आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में। स्वामी विवेकानंद बहुत ही महान व्यक्ति थे जिन्होंने दुनिया भर के लोगों में शांति और भाईचारा फैलाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसे में बहुत सी बार स्वामी विवेकानंद पर निबंध लिखने के लिए आता है। अगर आप भी एक विद्यार्थी हैं और आप स्वामी विवेकानंद पर अलग-अलग शब्दों में निबंध ढूंढ रहे हैं तो हमारे इस लेख को पूरा पढ़ें। आज के इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में।
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स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्दों में
भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक स्वामी विवेकानंद भी हैं। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को भारत के कोलकाता राज्य में हुआ था। बचपन में इन्हें नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था। इनके पिताजी का नाम विश्वनाथ दत्त और माताजी का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद एक महान नेता और हिंदू संत थे जिनके द्वारा रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गई थी। स्वामी विवेकानंद एक बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे और वह अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए भी काफी लोकप्रिय थे। इनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी।
स्वामी विवेकानंद पर निबंध 150 शब्दों में
स्वामी विवेकानंद एक महान भारतीय संत और नेता थे। यह 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में पैदा हुए थे। इनके जन्मदिन को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था और पिता का विश्वनाथ दत्त जोकि कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करत थे। स्वामी विवेकानंद ने ऐसे कई कार्य किए जिनके द्वारा भारत का नाम रोशन हुआ।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ के संस्थापक थे और उन्होंने विदेशों में भी रामाकृष्ण मिशन की शुरुआत की थी। शिकागो में उन्होंने अपने भाषण के द्वारा हिंदू धर्म के विषय को पूरे विश्व में परिचित कराया, जिसे सबसे अच्छा भाषण माना गया। वह बहुत ही पवित्र और धार्मिक व्यक्ति थे जो हर रोज रामायण और महाभारत पढ़ा करते थे। निसंदेह स्वामी विवेकानंद ऐसे महान आत्मा थे जिनका सभी लोग बहुत आदर किया करते थे।
स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्दों में
हमारे देश के महान संत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1868 को कोलकाता में हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता के न्यायालय में वकालत करते थे। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी शिवजी की एक बहुत बड़ी भक्त थी और हमेशा अपना ज्यादा समय वह धार्मिक स्थलों में ही बिताया करती थी। स्वामी विवेकानंद का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था जोकि बाद में विवेकानंद हो गया।
स्वामी विवेकानंद बचपन में नाम उनके माता-पिता ने नरेंद्र दत्त रखा था। इनके पिता चाहते थे कि यह अंग्रेजी भाषा पढ़ें और पश्चिमी सभ्यता के अनुसार अपनी जिंदगी को जिएं। पर विवेकानंद की पाश्चात्य सभ्यता में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और उन्होंने ब्रह्म समाज को अपनाया। इनके मन में ईश्वर को पाने की लालसा बहुत ही ज्यादा मजबूत थी और इसी वजह से इन्होंने अपना ध्यान परमात्मा की भक्ति में लगा दिया।
जब विवेकानंद ब्रह्म समाज से जुड़ गए तो उसके बाद उनके मन में ऐसे बहुत सारे सवाल थे जिनके जवाब कोई नहीं दे पा रहा था। फिर उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी की लोकप्रियता के बारे में सुना और उनके पास चले गए। स्वामी विवेकानंद जब काली मंदिर के पुजारी रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उनके शिष्य बन गए और उसके बाद उन्होंने अपना आगे का जीवन स्वामी विवेकानंद के नाम से सन्यासी बन कर जीने का फैसला लिया।
स्वामी जी ने अपने जीवन में दूसरे लोगों के लिए बहुत सारे प्रशंसनीय कार्य किए। इसके अलावा इन्होंने लोगों में आपसी भाईचारे पर सबसे ज्यादा जोर दिया था। स्वामी विवेकानंद ने भारत में ही नहीं बल्कि देश में जगह-जगह घूम कर बहुत सी धर्म सभाओं में भाग लिया और लोगों को हिंदू धर्म से अवगत कराया। इन्होंने भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में दुनिया के लोगों को परिचित करवाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी तरह से लोगों की भलाई करते हुए 4 जुलाई 1902 को इनकी मृत्यु हो गई।
स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500 शब्दों में
स्वामी विवेकानंद एक बहुत ही विद्वान और महान हिंदू संत थे जिन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति को फैलाया था। इनका जीवन बहुत ही सामान्य बच्चों की तरह गुजरा था। लेकिन इन्होंने युवावस्था आने तक सन्यास ले कर अपना सारा जीवन लोगों की सेवा में अर्पित कर दिया था। इन्होंने भारत के युवाओं को अपने ज्ञान के प्रकाश से जिंदगी जीने का सही रास्ता दिखाया। आज भी बहुत सारे युवा इनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं और इनका बहुत ज्यादा सम्मान करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी का शुरुआती जीवन
भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद ने 12 जनवरी 1868 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में जन्म लिया था। इनके पिता पेशे से वकील थे और उनका नाम विश्वनाथ दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी थी जोकि हमेशा पूजा पाठ में लगी रहती थी। विवेकानंद बुद्धि के मामले में बिल्कुल अपने पिता के जैसे थे। लेकिन इन्होंने आत्म नियंत्रण करना अपनी माता से सीखा था और धीरे-धीरे यह आत्म नियंत्रण में इतने ज्यादा माहिर हो गए थे कि अपनी मर्जी से खुद को समाधि में कभी भी और कहीं भी ढाल सकते थे। बचपन में इनके माता-पिता ने इनका नाम नरेंद्र रखा था पर बाद में जब इन्होंने संन्यास लिया था तो अपना नाम विवेकानंद कर लिया था।
जब 1884 में इनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी तो उसके बाद से इनके घर में काफी गरीबी आ गई थी। लेकिन स्वामी जी गरीबी से बिल्कुल भी नहीं घबराए और हमेशा खुद भूखे रहे लेकिन दूसरों को इन्होंने भोजन करवाया। स्वामी जी ने कभी भी अपने दुखों की परवाह नहीं की थी क्योंकि हमेशा यह दूसरों के दुख दर्द दूर करने का प्रयत्न करते रहते थे।
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा
स्वामी विवेकानंद जी अपने बचपन से ही बहुत अधिक बुद्धिमान थे क्योंकि इनकी तर्कशक्ति दूसरे लोगों को आश्चर्य में डाल दिया करती थी। इन्होंने संस्कृत भाषा में काफी ज्ञान हासिल किया था और इन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र के विषय में अपनी पढ़ाई पूरी की थी। परंतु स्वामी जी हमेशा से ही आत्म शांति के लिए बेचैन रहा करते थे और इसीलिए इन्होंने फिर अपनी पढ़ाई को छोड़कर ब्रह्म समाज के साथ खुद को जोड़ लिया।
स्वामी विवेकानंद जी के गुरु
स्वामी जी के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे जो एक मंदिर के पुजारी हुआ करते थे। इन्हें आध्यात्मिकता का बहुत ज्यादा ज्ञान था जिसकी वजह से स्वामी विवेकानंद इनसे काफी अधिक प्रभावित हो गए थे। इस तरह से फिर स्वामी जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस का शिष्य बन कर सन्यासी जीवन जीने निर्णय लिया।
स्वामी जी की यात्रा
अपने जीवन काल में स्वामी जी ने बहुत सारी यात्राएं की थी। केवल 25 साल की आयु में ही इन्होंने सन्यासी रूप ले लिया था और उसके बाद इन्होंने पूरे भारत की पैदल ही यात्रा की। इस तरह से इन्हें सभी लोग स्वामी विवेकानंद जी के नाम से जानने लगे। जब इन्होंने भारतवर्ष की यात्रा पूरी कर ली और भारत की संस्कृति को अच्छी तरह से जान लिया तो उसके बाद यह शिकागो गए। इन्हें शिकागो भारत की विश्व धर्म परिषद ने भेजा था। शिकागो जाकर इन्होंने अपने भाषण के माध्यम से हिंदू धर्म के बारे में लोगों को सही जानकारी दी और उन्हें अध्यात्म और वेदांत के बारे में भी बताया।
विवेकानंद जी की मृत्यु
स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदू धर्म के बारे में लोगों को सही जानकारी देने के लिए बहुत सारी यात्राएं की। इसी के चलते स्वामी जी लगभग 3 साल तक अमेरिका रहे और वहां के लोगों को अपना ज्ञान देते रहे। इन्होंने फिर अमेरिका में रामकृष्ण मिशन की बहुत सारी शाखाएं खोली और उसके बाद फिर यह भारत आ गए। उसके बाद जब स्वामी जी मेरठ में ध्यान कर रहे थे तो तब इनकी 4 जुलाई 1902 को इनकी मृत्यु हो गई थी।
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दोस्तों यह थी हमारी आज की पोस्ट जिसमें हमने आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में बताया। अब आप बहुत आसानी के साथ स्वामी विवेकानंद पर निबंध कम शब्दों में और ज्यादा शब्दों में लिख सकते हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारा यह लेख आपके लिए अवश्य उपयोगी रहा होगा। यदि जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे उन लोगों के साथ भी शेयर करें जो स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में ढूंढ रहें हैं।