परोपकार पर निबंध | परोपकार का महत्व पर निबंध

आज हम परोपकार पर निबंध लेकर आये हैं, इस हिंदी निबंध में हम परोपकार का महत्व, परोपकार की परिभाषा, परोपकार के लाभ जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे। यह निबंध स्कूल के बच्चों के लिए जो की class 1, 2, 3, 4, 5,6 या किसी भी कक्षा के हो सकते हैं। अक्सर बच्चों को परोपकार के बारे में या परोपकार का महत्व पर निबंध लिखने को कहा जाता है ऐसे यह आर्टिकल उनकी मदद कर सकता है।

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परोपकार पर निबंध – परोपकार का महत्व पर निबंध

प्रस्तावना –

जैसा की हम सब जानते है की परोपकार शब्द पर और उपकार से मिलकर बना है।

पर + उपकार = परोपकार

जिसका अर्थ है दुसरो पर उपकार करना। लेकिन ध्यान रहे इस उपकार मे कोई स्वार्थ नहीं होना चाहिए। तुलसीदास जी का कथन है “परहित सरिस धर्म नहिं भाई“: इसका अर्थ है की हम सभी को परोपकारी होना चाहिए। इसे बड़ा कोई धर्म नही होता। ये एक सामाजिक भावना है जो लगभग सभी मे होती है बस कुछ लोग सभी लोगों के लिए महसूस करते है और कुछ लोग अपने और अपनों के बारे मे। 

परोपकार का भाव हर धर्म में देखने को मिलता है हर जाति के लोग इसको मानते हैं बिना स्वार्थ के लोगों को मैंने किसी असहाय को रास्ता पार कराते हुए देखा है। कोई दुर्घटना होने पर दूसरों की मदद करते हुए देखा है, बिना स्वार्थ के लोगों को एक दूसरे के लिए रक्त का दान, नेत्र का दान करते हुए देखा है यह परोपकार ही तो है।

कोई एक परोपकारी व्यक्ति ही ऐसे काम कर सकता है क्योंकि उसे दूसरों की जरूरत अपने आप से ज्यादा समझ में आती है वह दूसरों को तकलीफ में नहीं देख सकता। अगर देखा जाए तो परोपकार का अच्छा उदाहरण हमें प्रकृति देती है जो बिना कुछ लिए बिना किसी स्वार्थ के हमें सिर्फ देती है। 

परोपकार की परिभाषा

आसान शब्दों में परोपकार की परिभाषा है: निस्वार्थ रूप से दूसरों की भलाई करना है। यदि हम अपनी भारतीय संस्कृति की बात करें तो हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि हमे दूसरों की भलाई के बारे में कैसे सोचना है यदि हम किसी को तकलीफ में देखें तो हमें क्या करना चाहिए। 

इस तरह से यह हमारे अंदर बिल्कुल बसा हुआ है और हम भारतीय निस्वार्थ रूप से दूसरों की मदद करते भी है। संत कबीरदास जी कहते हैं कि एक दिन हमारे पास न धन रहेगा और ना ही हमारा यौवन। हमारा घर भी छूट जाएगा उस वक्त रहेगा तो सिर्फ अपना यश और हमने जिन पर परोपकार किया है उनके आशीष। एक सच्चा परोपकारी वही है जो परोपकार के बदले कुछ नहीं चाहता हो। 

हमारे भारतीय समाज में ऐसे बहुत सारे साधु सन्यासी संत हुए हैं जिन्होंने हमेशा दूसरों की भलाई की है। अगर आप सभी को याद हो कि महर्षि दधीचि जैसे परोपकारी शायद ही कोई होंगे जिन्होंने अपनी अस्थियां तक दान में दे दी थी। देहदान की परंपरा आज भी मौजूद है हजारों लोग अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी आंखें दान में देते हैं अपने शरीर के उन अंगों को दान में देते हैं जिससे दूसरे जी सके।

परोपकार का हमारे जीवन में महत्व

दोस्तो परोपकार का हमारे जीवन में बहुत महत्व है देखा जाए तो हमारा पूरा जीवन ही परोपकार है। हमें छोटे से ही सिखाया जाता है कि हमें दूसरों पर दया करना चाहिए दूसरे की हर संभव मदद करना चाहिए और यह भावना हमारे दिल में छोटे से ही जगाई जाती है बचपन से ही हमें ऐसे संस्कार ऐसे भाव दिए जाते है। परोपकार एक महान भाव है परोपकारी व्यक्ति समाज के हित के बारे में सोचता है आज के समाज में बहुत सारे ऐसे एनजीओ है जो परोपकार का काम बहुत अच्छे से कर रहे हैं। 

झुग्गी झोपड़ी मैं बच्चों को पढ़ाना उनकी सामान्य जरूरतों का ध्यान रखना पढ़ाई लिखाई से संबंधित सामान देना कपड़े और खाने की व्यवस्था करना ये भी तो एक परोपकारी भावना और परोपकार का ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह इस परोपकार के बदले कुछ नहीं चाहते इस समाज मे व्यक्ति अकेले कुछ भी नहीं कर सकता। 

अगर हर आदमी अपनी ही स्वार्थ सिद्धि में लगा रहेगा तो भारतीय समाज की जो परिकल्पना है कहीं ना कहीं खंडित हो जाएगी। मानव समाज का कार्य ही परोपकार होना चाहिए तभी एक सफल समाज की कल्पना संभव है तभी समाज में कोई गरीब और अमीर नहीं रहेगा सभी में बराबरी का भाव होगा सभी निश्चिंत होकर अपने त्यौहार को मनाएंगे कोई भूखा नहीं सोएगा क्योंकि एक व्यक्ति को दूसरे की परवाह होगी और परोपकार का भाव ही है जो इसको बना पाएगा।

परोपकार के लाभ‌

परोपकार से आत्मिक शांति मिलती है कोई भी व्यक्ति अपने लाभ के लिए कभी परोपकार नहीं करता लेकिन अनजाने में भी उसे इससे लाभ होता है। उसकी आत्मा को शांति मिलती है एक पवित्र अंतः करण वाला आदमी ही परोपकार का भाव रखता है पर एक परोपकारी व्यक्ति कभी सोचकर परोपकार नहीं करता वह उसे अपने कर्तव्य की तरह निभाता है। 

हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो दूसरे की बेटियों की शादी बिना अपना नाम बताएं ही करा देते हैं लाखों खर्च कर देते हैं दूसरों की बेटी की शादी में पर अपना नाम तक आगे नहीं आने देते। ऐसा करने से ही उन्हें खुद को शांति महसूस होती है। इसके साथ-साथ बहुत सारा सम्मान भी मिलता है समाज में लोगों ने बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं लाखों की भीड़ में भी खड़ा व्यक्ति अकेला ही दिखता है। लोगों से दूर से ही पहचान लेते हैं हर जगह उसका सम्मान होता है हर जगह बस लोग उसी की चर्चा किया करते हैं। इसके साथ ही समाज में उन्नति भी होती है अपनी संकट के समय में किसी का सहारा मिलने पर व्यक्ति उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है साथ ही वह पूरी जीवन उस व्यक्ति की सराहना करता है जिसकी परोपकार से वह आगे बढ़ा है ऐसे व्यक्तियों का जीवन दूसरों के लिए आदर्श होता है लोग हमेशा उसकी तरह बनने की कोशिश करते हैं। अपने बच्चों को हमेशा बताते हैं कि उनके जैसा बनने की कोशिश करो। 

आज के समाज में देश दूसरे देश की भलाई नहीं चाहता, एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की तरक्की को देखकर परेशान हो जाता है, इन सब का मूल कारण परोपकार की भावना ना होना है। हमें अपनी ऋषि महर्षि से सीखना चाहिए किस तरह वे उपकार के बदले कभी उपकृत नहीं हुए, जिस तरह पेड़ हमेशा देना ही जानता है, बादल हमेशा जल देना जानते हैं, हवा हमेशा बहना जानती है, फूल दूसरों के लिए खिलते हैं, फल पेड़ पर दूसरों के लिए लगते हैं, यह सब परोपकार का ही तो उदाहरण है, सूरज रोज निकलता है दूसरों के लिए, दूसरों की उन्नति के लिए हम सभी को इनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए इनका सम्मान करना चाहिए।

प्रकृति और परोपकार

परोपकार और प्रकृति का बहुत गहरा रिश्ता है या यूं कह लें कि प्रकृति के कण-कण में परोपकार बसा हुआ है। हमारी प्रकृति में यह भावना बहुत कूट-कूट कर समाई हुई है उदाहरण के रूप में अगर हम इस पृथ्वी को ही ले ले निस्वार्थ भाव से अनाज उत्पन्न करती है और हम सभी का पेट भरती है। पेट भरने के साथ ही यह धरती पेड़ भी पैदा करती है जो ऑक्सीजन देकर हम सभी के प्राण को बचाए हुए है। 

इसी तरह अगर हम नदियों को देखें वो बिना किसी स्वार्थ भाव के हमेशा कलकल बहती रहते हैं इतनी बड़ी जनसंख्या का भरण पोषण इन नदियों के चलते ही होता है। वो कभी इसके बदले कुछ नहीं मांगती लेकिन हमें इन्हें संजोकर रखना चाहिए। क्योंकि बदलते परिवेश में हम कहीं इन्हें खो ना दे, और अगर यह नहीं तो हम भी नहीं हमारा भी जीवन तभी तक है जब तक की प्रकृति है, यह पहाड़ है, बदलते हुए मौसम है, बादल है। हमें प्रदूषण नहीं फैलाना चाहिए कम से कम धरती पर और इस प्रकृति पर हमें यह उपकार अवश्य करना चाहिए और खुद भी यह सीखना चाहिए। 

प्रकृति से हमें शिक्षा मिलती है की: हमेशा परोपकार करो पर बदले में कोई उम्मीद न रखो!

हम सभी मनुष्यों पर प्रकृति किस प्रकार परोपकार करती है हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बताना चाहिए बनना है तो उस वृक्ष के जैसे बनो जो फल से लदा रहता है लेकिन कभी अपने फल खुद नहीं खाता वह फल हमेशा दूसरे खाते हैं पर इसके बदले वह कोई आशा नहीं रखता। हमें अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहिए क्या हमेशा परोपकार करो पर उसके बदले कुछ भी आशा मत रखो निस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही परोपकार है।

निष्कर्ष

हमारी भारतीय संस्कृति में बहुत सारे ऐसे लोग हुए हैं जो परोपकार का जीता जागता उदाहरण है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू महर्षि दधीचि राजा हरिश्चंद्र जाने कितने लोग परोपकार के बहुत बड़े उदाहरण है। इन सभी लोगों ने हमेशा समाज को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है खुद की कभी चिंता ही नहीं की पर इसके बदले समाज से कुछ नहीं मांगा। 

हम सभी को परोपकारी होना चाहिए आजकल के समाज में इसकी बहुत जरूरत है जब हम परोपकारी होंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी परोपकारी होगी क्योंकि वह हमसे ही देखकर इसे सीखेंगे और यही संस्कार वह भी अपने आने वाली पीढ़ी को देंगे। यह क्रम निरंतर इसी तरह से चलता ही रहेगा रुकेगा नहीं संस्कृति की तरह हस्तांतरित होता रहेगा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को।

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