आज हम आपको गधे की कहानी सुनाने वाले हैं जो की मजेदार और शिक्षाप्रद होंगी। निचे हमने गधे पर 10 कहानियां दी हैं जो की बच्चों जरुर पसंद आएँगी और उनका ज्ञानवर्धन भी करेंगी।
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गधे की कहानी
आइये गधे पर लिखी गयी 10 मजेदार और ज्ञानवर्धक कहानियां पढ़ते हैं:
गधा और उसके मित्र
एक जंगल में एक गधा रहता था। उसके ढेर सारे मित्र थे। एक दिन गधे के पीछे कुछ शिकारी कुत्ते पड़। गधा बहुत डर गया और भागने लगा। अपनी जान बचाने के लिए वह अपने मित्रों के पास सहायता मांगने गया। घोड़े के पास पहुँचकर उसने सारी बात बताई और कहा, “क्या आप मेरी सहायता करेंगे?” घोड़े ने कहा, “क्षमा करना भाई, मुझे अभी बहुत काम है।”
गधा बैल के पास गया और बोला, “मेरी जान पर बन आई है… क्या आप अपने नुकीले सींगों से शिकारी कुत्तों को डरा देंगे?” बैल ने कहा कि उसे किसान की पत्नी के पास जाना है।
गधा जिराफ के पास गया। उसने भी व्यस्तता का बहाना बनाया। गधे ने बकरी के पास जाकर कहा, “बहन, शिकारी कुत्तों से मुझे बचा लो।” बकरी बोली, “मुझे उनसे बहुत डर लगता है । क्षमा करो, मैं जरा जल्दी में हूँ। तुम किसी और से सहायता ले लो।”
शिकारी कुत्ते बहुत पास आ चुके थे अब गधे ने अब भागना शुरु किया। सामने ही उसे एक गुफा दिखाई दिया। उसमें छिपकर गधे ने अपनी जान बचाई।
शिक्षा: दूसरों पर निर्भर रहने की जगह स्वयं पर भरोसा करना चाहिए।
नकलची गधे की कहानी
एक कस्बे में एक किसान था। उसने एक कुत्ता और एक गधा पाल रखा था। वह जिस कुत्ते को पाल रहा था वह बहुत शरारती था। घर के सभी लोग इसे खेलकर आनंद लेते थे। साथ ही कभी-कभी वह किसान के गोद में बैठ जाता था और पूँछ हिलाते हुए उसके चेहरे को चाट लेता था। गधा दूर से ही कुत्ते की सारी हरकतें देखता रहता था। गधा भी अपने मालिक के साथ कुत्ते की तरह खेलना चाहता था।
गधे की यह चाहत दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी। गधे ने सोचा कि अगर मैं भी कुत्ते की तरह हरकतें करूँगा तो वे मुझें और ज्यादा प्यार करेंगे। एक दिन किसान और उसकी पत्नी भोजन करके चांदनी रात में आए और आपस में मित्रतापूर्ण बातें कर रहे थे। तुरन्त ही गधा किसान की पत्नी की तरफ दौड़ा। और जीभ से उसके चेहरे को चाटना शुरू कर दिया।
यह देख किसान ने एक मजबूत डंडा हाथ में लिया और गधे को पीट दिया। फिर यह सोचकर कि उसका गधा पागल हो गया है, उसने उसे एक मजबूत रस्सी से बाँध दिया। डंडे से पिटाई और रस्सी के दर्द से गधे को बहुत पीड़ा हुई। इसलिए गधा रात भर बिना सोए वहीं पड़ा रोता रहा।
शिक्षा: वास्तव में कुत्ते और गधे को एक ही गृहस्थ ने पाला था। लेकिन उन दोनों में समान योग्यता नहीं हो सकती। जो काम कुत्ता करता है वह गधा नहीं कर सकता। और जो गधा कर सकता है वह कुत्ता नही कर सकता। ईश्वर ने प्रत्येक जीव को एक अलग चरित्र दिया है। इसे पहले स्वीकार किया जाना चाहिए और किसी दुसरे की नक़ल नही करना चाहिए।
आलसी गधे की कहानी
एक शहर में एक नमक का व्यापारी रहता था। वो रोज अपने गधे पर नमक के बोरे लाद कर बाज़ार में बेंचने जाता था। उनके रास्ते में एक छोटी सी नदी पड़ती थी। उसे पार करके ही उन्हें आगे जाना होता था। एक दिन गधे का पाँव नदी में फिसल गया और नमक के बोरे पानी में डूब गए।
गधा काफी कोशिशो के बाद सम्भल कर खड़ा हुआ। तब तक बोरी के कुछ नमक पानी में घुल कर बह चुके थे। बोरियां काफ़ी हल्के हो गये। वजन कम होने पर गधे को बहुत ख़ुशी हुई। अब गधे को ये ट्रिक समझ आ गई कि जैसे ही नमक की बोरियां पानी में डूबेंगी, नमक पानी में घुल कर बह जाएगा और उसका बोझ हल्का हो जायेगा।
अब गधा रोज ही ऐसा करने लगा। पानी में उतरते ही वो रोज नीचे बैठ जाता। नमक घुल कर बह जाता। व्यापारी का बड़ा नुकसान होने लगा। साथ ही व्यापारी समझ गया कि गधा चलाकी कर रहा है।
व्यापारी ने गधे को सबक सीखने की तरकीब सोची। व्यापारी ने गधे की पीठ पर नमक की जगह रुई से भरें बोरे लाद दिए। जो काफी हल्के थे।गधा काफी खुश था उसने सोचा पानी में पहुँच कर वो अपने बोझ को और हल्का कर लेगा।
लेकिन जैसे ही बोरे पानी में डूबे रुई गीली हो कर और ज्यादा भारी हो गई। गीली रुई के बोझ से गधे की पीठ में दर्द होने लगा। अब गधे की चलाकी उसको भारी पड़ गई थी। उस दिन के बाद गधे ने कभी चलाकी नहीं करी। अब व्यापारी बहुत खुश था।
बाघ की खाल में गधा
किसी नगर में एक लकड़हारा रहता था। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह लकड़ियाँ लादकर शहर ले जाता और लकड़ियाँ बेचकर लौट आता। लकड़हारे का परिवार बड़ा था और आय कम थी। सारी कमाई परिवार के ऊपर खर्च हो जाती। गधे के लिए चारा खरीदने के लिए कुछ न बचता। गाँव की चरागाह पर गाय-भैंसें चरतीं थी। अगर गधा उधर जाता तो चरवाहे डंडों से पीटकर उसे भगा देते।
ठीक से चारा न मिलने के कारण गधा बहुत कमजोर होने लगा था। लकड़हारे को भी चिंता होने लगी, क्योंकि कमजोरी के कारण उसकी चाल इतनी धीमी हो गई थी कि शहर तक पहुँचने में पहले से दुगना समय लगने लगा था।
एक दिन शहर जाते समय तेज बारिश होने लगी तभी रास्ते में लकड़हारे को एक गुफा दिखाई दी वह बारिश से बचने के लिए अपने गधे के साथ लकड़ियों समेत उस गुफा में चला गया तभी उस गुफा में उसने एक मरा हुआ बाघ दिखाई दिया।
बारिश थमने के बाद लकड़हारा गधे के साथ गुफा से बाहर निकलने लगा। गधा लड़खड़ाया। लकड़हारे ने देखा कि उसका गधा इतना कमजोर हो गया है कि एक-दो दिन बाद बिल्कुल चल नही पायेगा। तभी लकड़हारे को एक उपाय सूझा।
वह सोचने लगा, ‘‘अगर मैं उस बाघ की खाल उतारकर ले आऊँ और रात को इस गधे को वह खाल ओढ़ाकर खेतों में भेज दूँ तो लोग इसे बाघ समझकर डरेंगे। कोई निकट नहीं आएगा। गधा खेत चर लिया करेगा।’’ लकड़हारे ने ऐसा ही किया।
शाम को लौटते समय वह बाघ की खाल निकाल कर छिपाकर घर ले आया। रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ की खाल गधे को ओढ़ाई। गधा दूर से देखने पर बाघ जैसा ही नजर आने लगा। लकड़हारा संतुष्ट हुआ।
फिर उसने गधे को खेतों की ओर खदेड़ दिया। गधे ने एक खेत में जाकर फसल खानी शुरू की। रात को खेतों की रखवाली करनेवालों ने खेत में बाघ देखा तो वे डरकर भाग खड़े हुए। गधे ने भरपेट फसल खाई और रात के अँधेरे में ही घर लौट आया। लकड़हारे ने तुरंत खाल उतारकर छिपा दी।
हर रात लकड़हारा उसे खाल ओढ़ाकर छोड़ देता। गधा सीधे खेतों में पहुँच जाता और मनपसंद फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। लकड़हारा भी खुश था। मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगा।
लेकिन गधा अपना जन्मजात स्वभाव कैसे भूल सकता था। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त हो गई और वह लगा लोट लगाने। इससे बाघ की खाल एक ओर गिर गई। अब वह गधा बनकर उठा और डोलता हुआ खेत से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला।
खेत में झाँका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई। वह चिल्लाया, ‘‘अरे, यह तो गधा है।’’ उसकी आवाज औरों ने भी सुनी। सब डंडे लेकर दौड़े। गधे पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। लकड़हारे को भी वह नगर छोड़कर भागना पड़ा।
शिक्षा: पहनावा बदलने से असली चरित्र नहीं बदलता।
गधा, सियार और शेर
किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक दुष्ट और लालची गीदड़ उसका सेवक था जो की हमेशा शेर की चमचागिरी करता रहता था। दोनों की जोड़ी अच्छी थी। शेर शिकार करता और बचा खुचा खाना गीदड़ को दे देता। गीदड़ को बस खाने का जुगाड़ चाहिए था। खाना खाने के बाद गीदड़ उस शेर की वीरता के ऐसे गुणगान करता कि शेर का सीना फूलकर चौड़ा हो जाता।
एक दिन शेर की लड़ाई एक जंगली हाथी से हो गयी। हाथी बहुत शक्तिशाली था। उसने अपनी सूंड से उठाकर शेर को दूर फेंक दिया जिससे शेर एक पेड़ से टकरा कर बुरी तरह जख्मी हो गया। किसी तरह शेर जान बचाकर भागा।
कई दिन बीते, परंतु शेर के जख्म ठीक ही नही हो रहे थे। इस हालत में वह शिकार नहीं कर सकता था। जिसकी वजह से शेर और गीदड़ दोनों के भूखों मरने की नौबत आ गई। शेर को यह डर सताने लगा कि खाने का जुगाड़ न होने के कारण गीदड़ उसका साथ न छोड़ जाए।
शेर ने एक दिन गीदड़ से कहा, ‘‘देख, जख्मों के कारण मैं शिकार नही कर सकता, तू जाकर किसी बेवकूफ से जानवर को बातों में फँसाकर यहाँ ले आ। मैं छिपकर वार करूँगा।’’ गीदड़ को भी शेर की बात जँच गई। वह किसी मूर्ख जानवर की तलाश में घूमता-घूमता एक गाँव के बाहर नदी-घाट पर पहुँचा।
वहाँ उसे एक कमजोर सा गधा घास खाता हुआ नजर आया। वह शक्ल से ही बेवकूफ लग रहा था। गीदड़ गधे के निकट जाकर बोला, ‘‘पांय लागूँ चाचा। बहुत कमजोर हो गए हो, क्या बात है?’’ गधे ने अपना दुःखड़ा रोया, ‘‘क्या बताऊँ भाई, जिस किसान का मैं गधा हूँ, वह बहुत क्रूर है। दिनभर ढुलाई करवाता है और चारा कुछ देता नहीं।’’
गीदड़ ने उससे कहा, ‘‘चाचा, मेरे साथ जंगल चलो न, वहाँ बहुत हरी-हरी घास है। खूब चरना, तुम्हारी सेहत बन जाएगी।’’ गधे ने कान फड़फड़ाए, ‘‘राम-राम। मैं जंगल में जाऊंगा तो जंगली जानवर मुझे खा जाएँगे।’’ गधे ने कहा ‘‘चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं है कि पिछले दिनों जंगल में एक बगुला भगतजी का सत्संग हुआ था। उसके बाद जंगल के सारे जानवर शाकाहारी बन गए हैं।
अब कोई किसी को नहीं खाता।’’ ‘‘चाचू, पास के गाँव से एक गधी भी अपने धोबी मालिक के अत्याचारों से तंग आकर जंगल में आ गई है। वहाँ हरी-हरी घास खाकर खूब लहरा गई है। तुम उसके साथ घर बसा लेना।’’
गधे के दिमाग में हरी-हरी घास और घर बसाने के सुनहरे सपने तैरने लगे। वह गीदड़ के साथ जंगल की ओर चल दिया। जंगल में गीदड़ गधे को उस झाड़ी के पास ले गया, जिसमें शेर छिपा बैठा था। इससे पहले कि शेर पंजा मारता, गधे को शेर की नीली बत्तियों की तरह चमकती आँखें नजर आ गईं। वह डरकर उछला और भाग गया।
शेर बुझे स्वर में गीदड़ से बोला, ‘‘भई, इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम उसे दोबारा लाओ, अबकी बार गलती नहीं होगी।’’ गीदड़ दोबारा उस गधे की तलाश में गाँव पहुँचा। उसे देखते ही बोला, ‘‘चाचा, तुमने तो मेरी नाक कटवा दी। तुम अपनी दुल्हन से डरकर भाग गए?’’ ‘‘उस झाड़ी में मुझे दो चमकती आँखें दिखाई दी थीं, जैसे शेर की होती हैं।
मैं भागता न तो क्या करता?’’ गधे ने शिकायत की। गीदड़ झूठमूठ माथा पीटकर बोला, ‘‘चाचा ओ चाचा! तुम भी निरे मूर्ख हो। उस झाड़ी में तुम्हारी दुल्हन थी। जाने कितने जन्मों से वह तुम्हारी राह देख रही है। तुम्हें देखकर उसकी आँखें चमक उठीं तो तुमने उसे शेर समझ लिया?’’
गधा बहुत लज्जित हुआ, गीदड़ की चाल भरी बातें ही ऐसी थीं। गधा फिर उसके साथ चल पड़ा। इस बार झाड़ी के पास पहुँचते ही शेर ने नुकीले पंजों से उसे मार गिराया।
शिक्षा: किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों पर विश्वास नही करना चाहिए, और अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
लालची गधे की कहानी
यह कहानी एक लोमड़ी और एक गधे की है। लोमड़ी बहुत ही चतुर और चालाक जानवर था। वह अपनी चतुराई से हमेशा अपना भोजन का इंतजाम कर लेता था। वह हमेशा अपने से छोटे जानवर का शिकार करता था। लोमड़ी छोटे जानवर का मांस खाकर बोर हो गया था। अब लोमड़ी बड़ा जानवर का मांस खाना चाह रहा था।
जंगल में घूम- घूम कर लोमड़ी शिकार का तलाश करने लगा। जंगल में उसे एक मोटा- ताजा गधा दिखाई दिया जो घास चर रहा था। गधा काफी बड़ा था और उसका शिकार लोमड़ी नही कर सकता था इसलिए उसने योजना बनाने की सोची।
लोमड़ी पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगता है कि आखिर गधा को फंसाया कैसे जाये। गधा का मांस खाने में काफी स्वादिष्ट होगा क्योंकि वह मोटा ताजा है। लोमड़ी को प्यास लगता है। फिर वह जंगल के एक नदी के पास चला जाता है। अचानक लोमड़ी की नजर नदी किनारे गन्ने की खेत पर पड़ी।
गन्ने काफी बड़े और लंबे थे। लोमड़ी ने सोचा गन्ना काफी स्वादिष्ट होगा। लोमड़ी ने गन्ने की खेती के आसपास देखा तो वहां पर गन्ने की खेती करने वाला किसान मौजूद नहीं था। लोमड़ी गन्ने की खेत में घुसा और ढेर सारे गन्ने तोड़े और वापस जंगल के अंदर चला गया। एक पेड़ के नीचे बैठकर लोमड़ी गन्ना खाने लगा।
पेट भरने के बाद लोमड़ी वही पर सो गया। लोमड़ी जब सो कर उठा तो उसके मन में गधे को फसाने की एक तरकीब सूझी। लोमड़ी बचे हुए गन्ने को लेकर गधे के पास चला गया। गधे के कुछ दूरी पर लोमड़ी रुक गया और जोर-जोर से गाने लगा “स्वादिष्ट गन्ने का रस पियो अपनी बुद्धि बढ़ाओ , गन्ने का रस पियो अपनी बुद्धि बढ़ाओ”।
गधा घास चर रहा था। गधा यह आवाज सुनकर लोमड़ी के पास आता है। वह लोमड़ी से गन्ना का रस मांगता है। लोमड़ी गधा को बिल्कुल थोड़ा सा गन्ने का रस देता है। लोमड़ी गधा को उस रस को चाटने के लिए कहता है।
गधा को गन्ना का रस काफी मीठा लगता है और वह लोमड़ी से और रस मांगता है। लोमड़ी गधा को गन्ना का रस देने से मना कर देता है और लोमड़ी गधा से कहता है की मेरा कोई दोस्त नहीं है। जो भी जानवर मेरा दोस्त बनेगा मैं उसे ढेर सारे गन्ने का रस दूंगा । गधा गन्ना का रस पीने के लालच में लोमड़ी से दोस्ती कर लेता है।
यह जानते हुए भी कि लोमड़ी विश्वासघाती होते हैं। लोमड़ी रोज गधा के पास आता और गधा को थोड़ा सा गन्ना देता था। अब गधा और लोमड़ी में काफी मजबूत दोस्ती हो चुका था। इधर गन्ना की खेती करने वाला किसान बहुत परेशान था क्योंकि उसका खेत से गन्ना लगातार कम हो रहे थे। अब लोमड़ी गधा से कहता है की मित्र कब तक तुम थोड़ी-थोड़ी गन्ना खाते रहोगे।
मैं आज तुमको गन्ने की खेती में ले चलूंगा जहां पर बहुत मात्रा में गन्ने की खेती की गई है । तुम वहां पर जी भर कर आज गन्ने का रस पीना। गधा लोमड़ी के साथ आने के लिए मान जाता है । लोमड़ी गधा को गन्ना तोड़ने से पहले करने वाली क्रियाकलाप को बताता है। यह क्रियाकलाप लोमड़ी का जाल होता है। लोमड़ी गधा से कहता है कि गन्ना तोड़ने से पूर्व तुम्हें गन्ना के खेत के अंदर जाकर और आंखें बंद करके अपनी सुरीली आवाज में जोर-जोर से 5 मिनट तक गाना गाना होगा इसके पश्चात ही तुम गन्ना तोड़ पाओगी।
यदि तुम ऐसा नहीं करती हो और गन्ना तोड़ने में लग जाते हो तो तुम्हारे पैर टूट जाएंगे। गन्ना तोड़ने से पूर्व में भी ऐसा ही करता हूं। गधा लोमड़ी से कहता है मैं काफी अच्छा गाता हूं और गन्ना तोड़ने से पूर्व मैं अपनी सुरीली आवाज का तुम्हारे सामने प्रदर्शन करूंगा। लोमड़ी और गधा गन्ना के खेत में पहुंचते हैं । लोमड़ी गधा से कहता है की मित्र मैं तो हर रोज गन्ना तोड़ता हूं।
आज तुम गन्ना तोड़ो। लोमड़ी कहता है गधा से। क्या तुम्हें गन्ना तोड़ने से पूर्व के नियम मालूम है ना? गधा लोमड़ी से कहता है, हां.. हां, मित्र, मैं इतना भुलक्कड़ नहीं हूं। गधा आंखें बंद करता है और जोर जोर से गाना गाने लगता है। गधा की आंख बंद करते ही लोमड़ी चुपके से वहां से भाग जाता है। गधा जोर-जोर से देचू देचू करता है। गधा की आवाज सुनकर गन्ना की खेती करने वाला किसान बड़ा लाठी लेकर आता है।
किसान समझता है कि यही गधा मेरा फसल का नुकसान करता है, हर रोज। किसान लाठी से गधा के ऊपर अपनी लाठी से जोर-जोर से प्रहार करता है । किसान गधा को तब तक मारते रहता है जब तक कि गधा पूरी तरह से मर नहीं जाता। गधा को मारने के बाद किसान गधा को गन्ना के खेत से उठाकर जंगल में फेंक देता है। लोमड़ी यह सब एक झाड़ी के पीछे छुप कर देख रहा था ।
किसान के जाने के बाद लोमड़ी झाड़ी से बाहर आता है और गधा का मांस खाने लगता है। लोमड़ी को गधा का मांस बहुत ही स्वादिष्ट लगता है। इस प्रकार लोमड़ी अपना योजना को सफल बनाता है और लालची गधा मारा जाता है।
शिक्षा: लालच बुरी बला है और हमें लालच नही करना चाहिए।
स्वार्थ का फल – बंदर और गधा की कहानी
बहुत समय पहले की बात है। एक बार एक गधा जंगल में घास चर रहा था। वह गधा हर रोज वही पर हर रोज घास खाने आता था क्योंकि उस स्थान पर काफी हरे हरे घास मौजूद थे। एक बंदर हर रोज उस गधे को देखता था। एक दिन वह बंदर गधा के पास जाता है और बात करने का प्रयास करता है।
गधा बंदर की ओर ध्यान नहीं देता है। गधा बंदर से बात नहीं करना चाहता था। जब गधा वहां पर घास खाने आता था तब बंदर भी गधा के सामने हर रोज आ जाता था। बंदर गधा के पास इसलिए आता था क्योंकि बंदर गधा के पीठ पर बैठकर जंगल मे घूम सके। बंदर ने गधे को अपनी यह इच्छा नहीं बताई थी।
यह सिलसिला काफी दिन तक चलता रहा। अब गधा को बंदर पर तरस आ गया और उसने बंदर से बात करने की सोची। गधा ने बंदर से पूछा कि तुम मेरे पास हर रोज क्यों आते हो। बंदर गधा से कहता है कि मैं तुम्हें अपना दोस्त बनाना चाहता हूं। गधा बंदर से कहता है कि तुमने मुझमें ऐसा क्या देखा जिससे तुम मुझे अपना दोस्त बनाना चाहते हो।
तब बंदर कहता है कि तुम एक शांतिप्रिय जानवर हो जबकि बंदर काफी नटखट जानवर होते हैं। मुझे शांति अच्छा लगता है इसलिए मैं तुम्हें अपना दोस्त बनाना चाहता हूं। अब गधा और बंदर काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। अब गधा और बंदर दोनों साथ मिलकर जंगल में घूमा करते थे। काफी दिन बीत गए थे। बंदर अब भी गधा के सामने अपना इच्छा जाहिर नहीं किया था।
बंदर अब सोचने लगा था कि मौका देखकर मैं अपनी इच्छा गधा को बता दूंगा और इसके बाद में गधा के पीठ में बैठकर पूरा जंगल घूम लूंगा। बंदर जैसे ही अपना इच्छा बतलाने वाला होता है वैसे ही गधा को एक आम के पेड़ में एक सुंदर आम का फल दिखता है। उस पेड़ में सिर्फ एक ही आम था। आम उस पेड़ के सबसे ऊंची चोटी में लगा था।
गधा बंदर को पेड़ में लगे उस आम को दिखाता है और कहता है कि मुझे उस आम को खाने का मन है। तुम तो पेड़ में काफी आसानी से चढ़ जाते हो। तुम मेरे लिए उस पके आम को तोड़ दोगे। देखने से पता चलता है कि वह काफी मीठा होगा। बंदर पेड़ में चढ़ जाता है। बंदर को लालच आ जाता है और गधा से कहता है कि तुम इस आम को खाने के बारे में भूल जाओ इसे तो मैं अकेले खाऊंगा।
गधा बंदर से कहता है कि हम इसे बांट कर खा सकते हैं। पर बंदर गधा का बात नहीं सुनता है और कहता है कि इस आम को सिर्फ मैं खाऊंगा। गधा कहता है कि यदि तुम मुझे आम नहीं दोगे तो हमारा दोस्ती टूट जाएगा। तभी बंदर गधा से कहता है कि मैं बंदर और नहीं तो गधा से दोस्ती करूंगा।
मैं तो तुमसे दोस्ती इसलिए करना चाहता था ताकि मैं तुम्हारे पीठ में बैठकर इस जंगल में भ्रमण कर पाऊं। मैं आज अपना इच्छा जाहिर तुम्हारे सामने करने ही वाला था कि तुमने मुझे यह आम दिखा दिया जिससे मेरा मन में परिवर्तन हो गया। बंदर कहने लगा कि मैंने पहले इतना सुंदर आम कभी भी नहीं देखा था और लगता है कि यह आम काफी स्वादिष्ट होगा।
बंदर आम के पेड़ के सबसे ऊंचा चोटी में पहुंच गया। गधा नीचे से आम की ओर देख रहा था। आम बिल्कुल पका हुआ था। आम पेड़ के डाली के सबसे अंतिम छोर में मौजूद था। बंदर जैसे ही डाली को पकड़ा और आम के पेड़ के डाली को अपनी ओर खींचने लगा। आम बिल्कुल पक्का होने के कारण बंदर ने जैसे ही आम की डाली को अपनी ओर खींचा वैसे ही आम की डाली हिलने के कारण डाली में लगा आम टूट कर जमीन में गिर जाता है।
बंदर के हाथ में आम नहीं आ पाता है। नीचे खड़ा गधा आम को अपने मुंह में उठाता है और वहां से चला जाता है। बंदर अपना दोस्त से बेईमानी करना चाहता था। बंदर को काफी पछतावा होता है। बंदर को ना ही आम मिलता है और ना ही गधे के पीठ में सवारी करने का मौका।
शिक्षा: हमें स्वार्थी नही होना चाहिए और बेईमानी नही करनी चाहिए।
गवैया गधा
एक धोबी के पास एक गधा था. गधा प्रतिदिन मैले कपड़ों की गठरी पीठ पर लादकर घाट पर जाता था और संध्या समय धुले हुए कपड़ों का गट्ठर लेकर फिर घर लौट आता था. उसका प्रतिदिन यही काम था. रात में धोबी उसे खुला छोड़ देता था. रात का समय था. गधा घूम रहा था.
कहीं से धूमता हुआ एक सियार आ पहुंचा. गधे और सियार में कुछ देर तक बातचीत हुई. दोनों ने एक-दूसरे का हालचाल पूछा, फिर दोनों परस्पर मित्र बन गए. गधा और सियार दोनों बातचीत करते हुए एक खेत में पहुंचे. खेत में ककड़ियां बोई हुई थीं. पौधों में ककड़ियां लगी थीं.
दोनों ने जी भरकर ककड़ियां खाईं. ककड़ियां उन्हें अधिक स्वादिष्ट लगीं. अत: गधा और सियार दोनों प्रतिदिन रात में ककड़ियां खाने के लिए उस खेत में जाने लगे. दोनों जी भरकर ककड़ियां खाते थे और चुपचाप खेत से निकल जाते थे. मीठी-मीठी ककड़ियां खाने के कारण दोनों मोटे-ताजे हो गए. साथ ही उन्हें ककड़ियां खाने की लत भी लग गई.
जब तक ककड़ियां खा नहीं लेते थे, उन्हें चैन नहीं पड़ता था. धीरे-धीरे कई मास बीत गए. एक दिन चांदनी रात थी. आकाश में चंद्रमा हँस रहा था. गधा और गीदड़ दोनों अपनी आदत के अनुसार खेत में जा पहुंचे. दोनों ने जी भरकर ककड़ियां खाईं. गधा जब ककड़ियां खा चुका, तो बोला, अहा हा, कितनी सुदर रात है आकाश मे चद्रमा हस रहा है चारो ओर दूध की धारा सी बह रही है ऐसी सुदर रात मे तो मेरा मन गाने को कर रहा है.
गधे की बात सुनकर सियार बोला, गधे भाई, ऐसी भूल मत करना. गाओगे तो, खेत का रखवाला दौड़ पड़ेगा. फिर ऐसी पूजा करेगा कि छठी का दूध याद आ जाएगा! गधा गर्व के साथ बोला, वाह, मैं क्यों न गाऊं? मेरा कंठ-स्वर बड़ा सुरीला है. तुम्हारा कंठ-स्वर सुरीला नहीं है, इसीलिए तुम मुझे गाने से मना कर रहे हो. मैं गाऊंगा, अवश्य गाऊंगा.
सियार बोला, गधे भाई, मेरा कंठ-स्वर तो जैसा है, वैसा है. तुम्हारे सुरीले कंठ-स्वर को सुनकर खेत का रखवाला प्रसन्न तो नहीं होगा, डंडा लेकर अवश्य दौड़ पड़ेगा. पीठ पर इतने डंडे मारेगा कि आंखें निकल आएंगी. पर सियार के समझाने का प्रभाव गधे के ऊपर बिल्कुल नहीं पड़ा. वह बोला, तुम मूर्ख और कायर हो. मैं तो गाऊंगा, अवश्य गाऊंगा.
गधा सिर ऊपर उठाकर रेंकने के लिए तैयार हो गया. गीदड़ बोला, ”गधे भाई, जरा रुको. मुझे खेत से बाहर निकल जाने दो, तब गाओ. मैं खेत से बाहर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा. गीदड़ अपनी बात समाप्त करके खेत से बाहर चला गया. गधा रेंकने लगा. एक बार, दो बार, और तीन बार. गधे की आवाज चारों ओर गूंज उठी.
खेत के रखवाले के कानों में भी पड़ी. वह हाथ में डंडा लेकर दौड़ पड़ा. रखवाले ने खेत में पहुंचकर गधे को पीटना आरंभ कर दिया. उसने थोड़ी ही देर में गधे को इतने डंडे मारे कि वह बेदम होकर गिर पड़ा. गधे के गिरने पर रखवाले ने उसके गले में ऊखल भी बांध ..दी. गधे को जब होश आया, तो वह लंगड़ाता-लंगड़ाता ऊखल को घसीटता हुआ खेत के बाहर गया.
वहां सियार उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. वह गधे को देखकर बोला, क्यों गधे भाई, तुम्हारे गले में यह क्या बंधा हुआ है? क्या तुम्हारे सुरीले कंठ-स्वर पर रीझकर खेत के रखवाले ने तुम्हें यह पुरस्कार दिया है? गधा लज्जित हो गया. वह नीची गरदन करके बोला अब और लज्जित मत करो, सियार भाई!
झूठे अभिमान का यही फल होता है. अब तो किसी तरह इस ऊखल को गले से छुड़ाकर मेरे प्राण बचाओ. सियार ने रस्सी काटकर ऊखल को अलग कर दिया. गधा और सियार फिर मित्र की तरह घूमने लगे, पर गधे ने फिर कभी अनुचित समय पर गाने की मूर्खता नहीं की.
कुत्ता और गधा
एक`शहर में एक धोबी रहता था। उसके पास एक गधा और एक कुत्ता था। दोनों उसके घर के आंगन में बंधे रहते थे। एक रात्रि को वह गहरी निद्रा में सो रहा था कि उसके घर में एक चोर आ गया। कुत्ता और गधा दोनों ने चोर को आते देखा, पर जब कुत्ता भौंका ही नहीं, तो गधा उसे फटकारते हुए बोला : मित्र, चोर आ गया और तुम चुपचाप आराम से बैठे हो।
तुम्हें नहीं पता है कि चोर के आने पर तुम्हारा कर्त्तव्य है कि तुम शोर मचाकर स्वामी को जगा दो? कुत्ता बोला – भाई, तुम मेरे कर्तव्य की चिन्ता न करो। क्या तुम्हें पता नहीं, मैं दिन-रात इसके घर की रक्षा करता हूं इसलिए बहुत दिनों से कोई चोरी नहीं हुई। आज यह मेरे उपकार भूल गया और मुझे भरपेट खाना भी नहीं देता।
गधा क्रोध में आकर बोला – मूर्ख, ऐसा सेवक भी किस काम का, जो बुरे समय पर अपने स्वामी को धोखा दे दे। तू समय पड़ने पर स्वामी के कार्य की उपेक्षा करता है। मैं तो स्वामी का सच्चा सेवक हूं। मैं अपने स्वामी को अवश्य जगाऊंगा। यह कह गधे ने लगातार ढेंचू-ढेंचू चिल्लाना शुरू किया। नींद खुल जाने के कारण स्वामी को गधे पर बहुत क्रोध आया। चोर तो भाग गए पर गधे को इतनी मार पड़ी कि वह अधमरा हो गया। इसलिए कहते हैं, अपने काम से काम रखो। दूसरे के काम में दखल न दो।
स्वार्थी घोड़ा और मासूम गधा
एक नगर में एक व्यापारी रहता था। उसके पास एक गधा और एक घोड़ा था। एक दिन वह अपने घोड़े और गधे को लाद कर पास के शहर के बाजार में गया। व्यापारी ने घोड़े से ज्यादा बोझ गधे पर डाला। इसलिए गधा ठीक से चल भी नहीं पाता था। यह जोर से डगमगाया।
तब गधे ने घोड़े से कहा, “मेरे मित्र, मेरी पीठ पर भारी बोझ होने से मुझे बहुत पीड़ा हो रही है। मैं तुम्हारे साथ भी नहीं रह सकता। क्या मैं अपने बोझ में से कुछ तेरा बोझ बढ़ा सकता हूँ?” विनती से पूछा। घोड़े ने पूछा, “क्या मैं तुम्हारा बोझ उठाऊँ? यह सब संभव नहीं है” गुस्से में कहा।
गधा अपने ऊपर रखे गए भार का भार सहन नहीं कर सका और विलाप करने लगा। दर्दनाक। इसलिए चल भी नहीं सकते थे। गधे की टांगें बँधी होती हैं; गधा नीचे गिर गया और कुछ ही देर में उसकी मौत हो गई। स्वार्थी व्यापारी ने बूढ़े गधे की चमड़ी उतार दी।
फिर उसने अपना सारा बोझ घोड़े पर लाद दिया।घोड़ा अब एक दोहरा बोझ रहा है। इसलिए अब घोड़ा चलने में असमर्थ था। घोड़े की रीढ़ टूट गई थी। तो अब घोड़ा भी नहीं चल सकता था। घोड़ा तेजी से नहीं चल रहा है, यह देखकर व्यापारी ने घोड़े को चाबुक से पीटा।
घोड़े के वार ने उसे और भी पीड़ादायक बना दिया। आंसू बह निकले। ‘दोस्त! मैंने अपनी अज्ञानता के कारण तुम्हें खो दिया। मैं न केवल तेरा बोझ उठाऊंगा, बल्कि तेरी खाल भी उठाऊंगा। मैं अपनी गलती के कारण पीड़ित हूं’ मन में सोचा कि।
शिक्षा: स्वार्थी लोग जो किसी करीबी दोस्त के मरने पर भी मदद करने से इंकार करते हैं, उनका हाल इस घोड़े की तरह होता है। अतः हमें परोपकार की भावना रखनी चाहिए।
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