बंदर की 10 मजेदार कहानी | Monkey Story in Hindi

आज हम आपको बन्दर की कहानी सुनाना चाहते हैं जो की ज्ञानवर्धक और मजेदार हैं। Monkey story in Hindi के इस पोस्ट में हमने आज बंदर की 10 मजेदार और शिक्षाप्रद कहानियां दी हैं जो की बच्चों का मनोरंजन करेंगी और कहानी के माध्यम से सीख भी देंगी।

bandar ki Kahani

बंदर की कहानी

आइये बंदर की कहानी पढ़ते हैं, हर कहानी के निचे कहानी से मिलने वाली शिक्षा (moral) दी गयी है जिसे जरुर पढ़ें और बच्चों को समझाएं।

बिल्ली और बंदर की कहानी

एक जंगल में बंदर रहता था जो की बहुत ही चालाक था। एक दिन उसे भूख लगी थी लेकिन उसे समझ नही आ रहा था की वह खाने की व्यवस्था कहाँ से करे। तभी उसे दो बिल्लियाँ आपस में लडती हुई दिखाई दीं जिनके हाथ में एक रोटी थी जिसे देखकर बंदर को लालच आ जाता है।

बंदर उस रोटी को खाने की योजना बनाता है और उन बिल्लियों के पास पहुँचता है। और उनसे पूछता है की तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो? एक बिल्ली बोली की मैंने यह रोटी रस्ते से उठाई है इसलिए यह मेरी, तभी दूसरी बिल्ली बोली की इस रोटी को सबसे पहले मैंने देखा था इसलिए यह मेरी है।

बंदर ने बोला की इसमें लड़ने की क्या जरूरत है मैं इस समस्या का हल निकाल सकता हूँ। बिल्ली बोली हमें तुम्हारी जरुरत नही है, हम आपस में निपट लेंगे। बंदर ने कहा अगर ऐसा होता तो इतनी देर तक तुम दोनों लड़ते नही रहते।

तुम दोनों डालने की जगह रोटी आपस में बाँट लो तो समस्या सुलझ जाएगी। दोनों बिल्लियाँ मान गयीं और उन्होंने ने रोटी बंदर को दे दिया ताकि बंदर दोनों में बराबर रोटी बाँट सके।

बंदर ने जानबूझकर एक बिल्ली को बड़ा टुकड़ा दिया तभी दूसरी बिल्ली बोल पड़ी की उसका हिस्सा बड़ा है और मेरा छोटा। बंदर ने कहा ठीक है मैं इसे छोटा कर देता हूँ और उसने बड़े हिस्से की रोटी से छोटा सा टुकड़ा तोड़कर खा लिया।

फिर दूसरी बिल्ली बोली की मेरा हिस्सा छोटा है। बंदर ने भी दुसरे हिस्से की रोटी से छोटा टुकड़ा खा लिया। इसी तरह बार-बार बिल्लियाँ लडती रहीं और बंदर रोटी टुकड़े कर खाता रहा और अंत में उसने साड़ी रोटी खा ली और पेड़ पर चढ़ गया। बिल्लियाँ एक दुसरे का मुह तकती रह गयीं।

शिक्षा: दो की लड़ाई में हमेशा फायदा तीसरे को होता है इसलिए हमें नही लड़ना चाहिए।

बया और बंदर

एक घने पेड़ पर अपने घोंसले में, बया दम्पत्ति प्रेम से रहते थे। एक बार भीषण बरसात हुई और तेज, ठंडी हवाएँ चलने लगीं। उसी समय भीगकर ठंड से काँपता हुआ एक बंदर पेड़ के नीचे आया।

मादा बया को काँपते हुए बंदर पर बहुत दया आई। उसने कहा, ‘‘प्रिय मित्र! तुम मनुष्य जैसे दिखते हो। तुम्हें ईश्वर ने हाथ और पैर भी दिए हैं। तुम स्वयं अपने लिए घर क्यों नहीं बनाते हो? इस भयानक सर्दी से भी बचोगे।’’

बया की सलाह सुनकर बंदर क्रोधित हो गया और उसने कहा, ‘‘मूर्ख! तुम अपने काम से काम रखो। मैंने तुमसे सलाह तो नहीं माँगी… मुँह बंद करो।’’ बया चुप हो गई। बंदर अपने क्रोध् को शांत नहीं कर पा रहा था।

वह सोचने लगा, ‘‘इस छोटी सी चिड़िया की मुझे सलाह देने की हिम्मत कैसे हुई? मैं अभी इसे अपनी शक्ति दिखाता हूँ।’’ इन्हीं विचारों के साथ बंदर ने पेड़ पर चढ़कर बया का घोंसला नष्ट कर दिया।

शिक्षाः योग्य लोगों को ही सलाह देनी चाहिए अन्यथा दुःखद अंत होता है।

निष्ठावान बंदर

किसी बियावान जंगल में दो बंदर भाई अपने जाति के सरगना के रूप में शान से खुशी-खुशी रहते थे। सभी बंदरों की देखभाल के साथ-साथ झाड़ी में रहने वाली अपनी बूढ़ी माँ का भी ख्याल करते थे।

प्रतिदिन पेट भरकर खाते और अपनी माँ के लिए मीठे फल भेज दिया करते थे। पर माँ को वे फल नहीं मिलते थे क्योंकि फल ले जाने वाले बंदर उन्हें रास्ते में ही चट कर जाते थे। खाने के अभाव में धीरे-धीरे माँ बहुत कमजोर हो गई। यहाँ तक कि बैठना भी उसके लिए कठिन हो गया।

एक दिन बड़ा भाई माँ से मिलने आया। माँ का हाल देखकर उसने कहा, ‘‘माँ, हमलोग प्रतिदिन तुम्हारे लिए मीठे फल भेजते हैं फिर भी तुम इतनी कमजोर क्यों हो गई हो?’’ आश्चर्य से बंदर माँ ने कहा, ‘‘मीठे फल! यह तुम क्या कह रहे हो? आज तक मैंने ऐसा कोई फल नहीं खाया है।’’

बेटे बंदर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा पलक झपकते ही वह सारा माजरा सब समझ गया। उसने सोचा, ‘‘मैं कैसा कुपुत्र हूँ! दूसरे बंदरों के साथ मजे करता रहा और मेरी माँ भूखी रही। यदि मैं दूसरे बंदरों के साथ रहता रहा तो मेरी माँ पक्का मर जाएगी… मैं ऐसा नहीं होने दूँगा।’’ उसने अपने भाई से कहा, ‘‘प्रिय भाई, अब तुम बंदरों के सरगना बनकर रहो और मैं माँ की सेवा करूँगा।’’

बंदर की मालीगिरी

राजा विश्वसेना के महल के चारों ओर एक सुंदर बगीचा था। उस बगीचे के देखभाल की जिम्मेदारी एक निपुण माली पर थी। शीघ्र ही शाही उत्सव होने वाला था इसलिए माली ने क्यारियों को विलक्षण फूलों के पौधों से सजाया था। उनके खिलने से बगीचा और भी सुंदर लग रहा था। उस बगीचे में कुछ बंदर भी रहते थे जो कि माली के साथ-साथ बगीचे की देखभाल भी करते थे।

एक दिन किसी आवश्यक कार्य से माली को सात दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। उसने बंदरों को बुलाकर निर्देश दिया, ‘‘मेरे आने तक पौधों की सिंचाई करना, घास काटना, खर-पतवार निकालना और आवश्यक हो तो कटाई-छँटाई भी करना।’’ बंदरों ने आज्ञा पालन का वचन दिया। माली उन्हें झज्झर (पानी पटाने का पीपा) देकर चला गया। अगले दिन से बंदरों ने पानी पटाना तथा बगीचे की देखभाल शुरु कर दिया।

उन्हें ऐसा करते देखकर बंदरों के मुखिया ने उन्हें सलाह दी, ‘‘धीरज धरो। पानी बर्बाद मत करो। मेरे पास एक उपाय है। पहले पौधों को उखाड़ो, जड़ की लम्बाई नापो और उसी के अनुरूप पानी डालो। लम्बी जड़ के लिए अधिक पानी और छोटी जड़ के लिए कम पानी डालना।’’ मुखिया की सलाह मानकर बंदर काम में लग गए। कुछ ने तुरंत पौधें उखाड़ डाले और कुछ बंदर जड़ की लम्बाई नापने लगे। उसी अनुसार पानी डालकर उन्हें वापस मिट्टी में लगा दिया।

उसी समय एक बुद्धिमान दरबारी बगीचे में आया। बंदरों के कार्य को देखकर उसने कहा, ‘‘अरे मूर्खों, इन पौधों के साथ तुम लोग यह क्या कर रहे हो? किसने तुम्हें इस प्रकार पौधों में पानी डालने की सलाह दी है?’’ बंदरों ने उत्तर दिया, ‘‘हमारे मुखिया बंदर ने कहा है।’’ बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, ‘‘यदि तुम्हारा मुखिया इतना बड़ा मूर्ख है तो तुम्हारे मूर्ख होने में तो कोई संदेह ही नहीं है।’’

बंदरों ने कहा, ‘‘अरे ओ मानव जाति, अपना मुँह बंद करो। तुम हमारे मुखिया की बेइज्जती कर रहे हो। बिना पौधें को उखाड़े और जड़ की लम्बाई नापे बिना पानी के अनुपात का कैसे पता चलेगा?’’ बुद्धिमान व्यक्ति भौंचक्का सा चुपचाप वहाँ से चला गया।

शिक्षाः मूर्खों को उपदेश देना व्यर्थ है।

टोपीवाला और बंदर

बहुत पुरानी बात है… एक टोपीवाला था। वह मस्ती में हाँक लगाता, “टोपियाँ ले लो, टोपियाँ… रंग बिरंगी टोपियाँ, पाँच की, दस की, हर उम्र के लिए टोपियाँ ले लो…” एक शहर से दूसरे शहर टोपियाँ बेचने जाया करता था।

एक बार जंगल से गुजरते समय वह थककर एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठ गया। शीघ्र ही उसकी आँख लग गई। पेड़ पर ढेर सारे बंदरों का बसेरा था। उन्होंने टोपीवाले को सोते देखा तो नीचे उतर आए और उसकी गठरी खोलकर टोपियाँ ले लीं और वापस पेड़ पर जाकर बैठ गए।

सभी टोपियाँ पहनकर खुशी से ताली बजाने लगे। ताली की आवाज सुनकर टोपीवाले की आँख खुल गई। उसने अपनी गठरी खोली और टोपियों को गायब पाया। इधर-उधर देखा पर टोपियाँ नहीं दिखी। अचानक उसकी दृष्टि पेड़ पर टोपी पहने बंदरों पर पड़ी।

टोपीवाले को कुछ सूझा। उसने अपनी टोपी उतारी और नीचे फेंक दी। नकलची बंदरों ने उसकी नकल उतारी और उन्होंने भी अपनी- अपनी टोपियाँ उतारकर नीच फेंक दीं। टोपीवाले ने उन्हें समेटा और गठरी बनाकर खुशी-खुशी हॉक लगाता हुआ चल पड़ा…, “टोपी ले लो भाई, टोपी… रंग बिरंगी टोपी…

शिक्षा : बुद्धिमता मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण निधि है।

बंदर और मगरमच्छ की कहानी

किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा आम का पेड़ था। उस पेड़ पर एक बंदर रहता था। बंदर पेड़ पर फलने वाले मीठे आमों को खाकर खूब खुश रहता था। नीचे नदी में एक चालाक मगरमच्छ रहता था। वह रोज बंदर को मीठे आम खाते देखकर मन ही मन सोचता था कि, “यह बंदर रोज इतने मीठे आम खाता है। इसका दिल कितना मीठा होगा। काश! मैं उसका दिल खा पाता…..।”

मगरमच्छ मन ही मन में बंदर के दिल को खाने की योजना बनाता रहता। धीरे–धीरे उसने बंदर से दोस्ती कर ली। कभी–कभी बंदर उसे भी आम दे दिया करता था। एक दिन बंदर दोपहर के समय पेड़ पर आराम कर रहा था। मगरमच्छ पेड़ के नीचे आकर बोला, “मित्र तुम रोज यही आम खा–खाकर क्या ऊब नहीं गए?” बंदर यह सुनकर बड़ा हैरान होकर, बोला, “क्या कोई दूसरा उपाय है?” “हां है …” मगरमच्छ बोला, “मेरे साथ आओ। नदी की दूसरी ओर केले का बाग है। वहां इतने मीठे केले लगते हैं कि मैं तुम्हें बता नहीं सकता।”

बंदर मगरमच्छ के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। वह बोला, “पर मित्र, मैं जाऊंगा कैसे? मुझे तैरना तो आता ही नहीं है।” मगरमच्छ बोला, “में तुम्हें अपनी–पीठ पर बिठाकर बगीचे तक ले जाऊंगा….।” बंदर को खाने का बहुत अच्छा मौका मगरमच्छ को मिल गया। उसने बंदर को अपनी पीठ पर बैठाया और नदी में तैरने लगा। बीच नदी में पहुंचकर बंदर को लगा कि वह पानी में डूब रहा है। बंदर चिल्लाया, “अरे भाई मैं तुम्हारे पीठ पर हूं। नीचे मत जाओ, मैं डूब जाऊंगा, मुझे तैरना नहीं आता।” धूर्त मगरमच्छ बोला, “मित्र, यही तो मैं चाहता हूं। कब से तुम पर मेरी नजर थी। जो इतने मीठे आम खाता है, उसका दिल कितना मीठा होगा….मैं तुम्हारा दिल खाना चाहता हूं। तुम डूबकर मर जाओगे तो मैं तुम्हारा दिल खा लूंगा।”

बंदर को समझ में आ गया कि वह धूर्त मगरमच्छ के जाल में फंस गया है। परंतु ऊपर से शान्त रहकर हंसते हुए बोला, “तुम्हें यह बात मुझे पहले ही बतानी चाहिए थी। तुम मेरे प्रिय मित्र हो। तुम्हें मेरा दिल ही तो चाहिए था, मुझसे कहा होता, मैं दे देता। मैं तो अपना दिल पेड़ पर ही छोड़ आया हूं। अगर मैं अपना दिल लाता तो मैं भारी हो जाता और तुम्हें तैरने में परेशानी होती।”

मगरमच्छ कुछ समझ नहीं पाया और बोला, “तुम बंदर लोग अपने दिल को अपने शरीर में नहीं रखते हो यह तो मुझे पता ही नहीं था….” बंदर बोला, “चिंता मत करो, मुझे वापस पेड़ पर ले चलो। मैं ऊपर से दिल उतार कर तुम्हें दे दूंगा।” मगरमच्छ बंदर को वापस किनारे पर पेड़ के पास ले आया। जैसे ही वे किनारे पर पंहुचे, बंदर उछलकर पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर चढ़ गया और ऊपर से ही चिल्लाया, “मूर्ख, तुमने सोचा था कि तुम मुझे मूर्ख बना लोगे और मेरा दिल खा लोगे। तुम खुद ही मूर्ख बन गए हो। मेरा दिल मेरे पास ही रहता है। मित्र समझकर मैंने तुम पर विश्वास किया था पर तुम तो धोखेबाज हो….चले जाओ यहां से…..।” मगरमच्छ कुछ बोल नहीं पाया। निःशब्द वह वापस नदी में चला गया।

शिक्षाः धूर्त का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।

बन्दर की टूटी पूँछ

किसी शहर में मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। मंदिर में लकड़ी का काम बहुत था, इसलिए लकड़ी चीरने वाले बहुत से मजदूर काम पर लगे हुए थे। यहाँ-वहाँ लकड़ी के लट्ठे पड़े हुए थे और लट्ठे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मजदूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पड़ता था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहाँ कोई नहीं होता था। एक

दिन खाने का समय हुआ तो सारे मजदूर काम छोड़कर चल दिए। एक लट्ठा आधा चिरा रह गया था। आधे चिरे लट्ठे में मजदूर लकड़ी का कीला फँसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती है। तभी वहाँ बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक बड़ा शरारती बंदर भी था, जो बिना मतलब चीजों से छेड़छाड़ करता रहता था।

बंदरों के सरदार ने सबको वहाँ पड़ी चीजों से छेड़छाड़ न करने का आदेश दिया। सारे बंदर पेड़ों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अड़ंगेबाजी करने। उसकी नजर अधचिरे लट्ठे पर पड़ी। बस, वह उसी पर पिल पड़ा और बीच में अड़ाए गए कीले को देखने लगा। फिर उसने पास पड़ी आरी को देखा। उसे उठाकर लकड़ी पर रगड़ने लगा।

उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरों की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ ‘निखट्टू’ था। वह दोबारा लठ्टे के बीच फँसे कीले को देखने लगा। उसके दिमाग में कौतूहल होने लगा कि इस कीले को लट्ठे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकड़कर उसे बाहर निकालने के लिए जोर-आजमाइश करने लगा।

कीला जोर लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया। वह और जोर से खों-खों करता कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती के बीच बंदर की पूँछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।

उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा, लट्ठे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड़ गए और बीच में फँस गई बंदर की पूँछ। बंदर चिल्ला उठा। तभी मजदूर वहाँ लौटे। उन्हें देखते ही बंदर ने भागने के लिए जोर लगाया तो उसकी पूँछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूँछ लेकर भागा।

सीख : बिना सोचे-समझे कोई काम न करें।

शेर और बंदर की कहानी

एक बहुत बड़ा और घना जंगल था। उस घना जंगल में कई सारे जानवर रहते थे। उस जंगल में कई सारे बंदर रहा करते थे। जंगल में एक विशाल शेर भी रहता था। वह शेर बेहद ताकतवर था। वह हर रोज जंगल के जानवरों को मारता और खाता था। उस जंगल के बीचोंबीच एक बहुत बड़ा तालाब था। उस तालाब में भी कई सारे जलीय जीव रहते थे। उस तालाब के किनारे बड़ी संख्या में नारियल के पेड़ मौजूद थे।

गर्मी का मौसम था। जंगल के सारे जानवर उस तालाब में नहाने आते थे । पूरे जंगल में पानी का एक ही स्रोत था और वह स्रोत था, तालाब। शेर को अपना शिकार ढूंढने में बहुत ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि जंगली जानवर पानी पीने और नहाने के लिए जब तालाब के पास आते थे, तब शेर मौका देख कर जंगली जानवर का शिकार कर लेता था।

उस तालाब के किनारे मौजूद नारियल के पेड़ के ऊपर बंदर उछल कूद करते रहते थे। कई बार शेर बंदरों को भी अपना शिकार बना लेता था। एक दिन शेर पानी पीने के लिए तालाब के पास आया तब ऊपर से एक गोल वस्तु गिरा। वह नारियल का फल था। शेर ने जब ऊपर देखा तो नारियल के पेड़ में ढेर सारे बंदरों की झुंड दिखाई दी। कई सारे बंदर नारियल के फल को मुंह में लगाए हुए थे।

शेर को पहले तो कुछ समझ नहीं आया। शेर ने ध्यान से देखा तब उन्हें पता चला कि इस नारियल के फल के अंदर से एक पानी जैसा तरल पदार्थ निकल रहा था। उसे बंदर बड़े ही मजे से पी रहे थे। शेर ने भी नारियल के फल में जोर से पंजा मारा जिससे नारियल फूट गया। शेर ने उस पानी को पिया तो साधारण पानी से ज्यादा स्वाद लगा । शेर को और नारियल पानी पीने की इच्छा हुई।

शेर ने जोर से दहाड़ा जिससे पूरा जंगल शांत हो गया। शेर ने चिल्लाकर बंदरों से नारियल का फल देने के लिए कहा। बंदरों ने नारियल का फल शेर को नहीं दिया। बंदर कहने लगे कि तुम तो हम लोगों को मारकर खा जाते हो फिर हम तुम्हें नारियल का फल क्यों दें। शेर को नारियल का पानी पीने का बेहद ही मन था इसलिए शेर ने बंदरों को कहा मैं तुम लोगों का शिकार नहीं करूंगा अब से लेकिन इसके बदले में तुम लोगों को मुझे नारियल पानी देना होगा।

बंदर यह बात सुनकर काफी खुश हुए और मान गए। शेर रोज तालाब के पास आता और पानी की जगह पर नारियल पानी पी कर वहां से चला जाता था। जंगल में बंदरों को छोड़कर बाकी जानवरों का शिकार करता था। इस तरह काफी दिन बीत गए। अब शेर और बंदरों में काफी अच्छी मित्रता हो गई थी। अब बंदरों को शेर से डर नहीं लगने लगा था।

अब बंदरों के झुंड शेर के आसपास कूदते और खेलते रहते थे। अब गर्मी का मौसम खत्म होने वाला था। अब बरसात का मौसम प्रारंभ हो गया था इसलिए जंगल के जानवर अब तालाब के पास नहीं आते थे क्योंकि उन जानवरों को पानी जंगल के अन्य दूसरे भाग में भी मिल जाता था। बरसात के मौसम आने से तालाब के किनारे लगे पेड़ों से नारियल का फल खत्म हो गया था।

अब शेर को शिकार करने में परेशानी होने लगा था। बंदर और शेर के बीच काफी अच्छी दोस्ती होने के कारण बंदरों को शेर से डर नहीं लग रहा था। अब शेर को बंदरों से नारियल पानी मिलना भी बंद हो गया था क्योंकि बरसात आते ही नारियल पेड़ से नारियल फल खत्म हो गया था। अब शेर ने शिकार करने का एक अच्छा तरकीब ढूंढ निकाला। शेर ने बंदरों के दोस्ती का फायदा उठाया।

शेर रोज बंदरों के झुंड में आता और एक बंदर को बहला-फुसलाकर चुपके से बंदरों के झुंड से दूर ले जाता और उसे मारकर खा जाता। कुछ दिनों तक ऐसा ही सिलसिला चलता रहा। पर अब बंदरों को अचानक लगने लगा कि उनकी संख्या में कमी आ रही है। कुछ बंदरों ने इसका पता लगाने के लिए सारे बंदरों पर निगरानी करने लगे। पहले की ही तरह शेर बंदरों के झुंड में आया और कुछ देर बंदरों के साथ खेला।

कुछ बंदर शेर पर नजर बनाए हुए थे। कुछ देर बाद शेर एक बंदर को अपने पीठ पर बैठा कर आसपास घुमा रहा था। शेर को मौका मिलते ही झाड़ियों में छुप गया पर शेर को यह पता नहीं था कि कुछ बंदर उस पर नजर बनाए हुए हैं। बंदर उस झाड़ियों में जाते हैं जहां शेर ने एक बंदर को अपने पीठ में बैठा कर ले गया था। पर वहां पर ना बंदर मिलता है और ना ही शेर। उन झाड़ियों से बंदर को कहीं दूर ले गया था।

निगरानी कर रहे बंदरों ने जोर से आवाज लगाई सभी बंदरों को। सारे बंदर एक जगह एकजुट हो गए। निगरानी कर रहे बंदरों ने सारे बंदरों को शेर की घटना के बारे में बताया। अब सारे बंदर शेर और उस एक बंदर को ढूंढने के लिए चल दिए। बंदरों ने देखा कि वह शेर एक बंदर को पहाड़ के पीछे ले जाकर मारकर खा रहा था। सारे बंदरों को यह बात पता चल गया था।

इसके बाद से शेर के पास कोई भी बंदर नहीं जाता था। सारे बंदरों ने आपस में मिलकर एक फैसला किया कि कभी भी हिंसक और मांस खाने वाले जानवरों से दोस्ती नहीं करेंगे । सारे बंदर शेर के इलाका से काफी दूर चले गए और उस इलाके में और कभी दोबारा लौटकर नहीं आए। अब बंदर शेर से सुरक्षित थे।

खरगोश, पक्षियां और बंदर की कहानी

एक जंगल में एक बदमाश बंदर रहता था। वह जंगल के सभी जानवरों को परेशान करता था। जंगल के सारे जानवर उस दुष्ट बंदर से काफ़ी परेशान थे। वह बंदर हर जानवर की नकल करता रहता था और सभी जानवरों को चिढाया करता था। उस बंदर को ऐसा करने में काफी मजा आता था और वह किसी की बात नहीं सुनता था।

अब तो बंदर ने हद पार कर दी थी। वह पक्षियों का घोंसला को नष्ट करने लगा। पक्षियां इस बात से काफी उदास थी क्योंकि दिन भर मेहनत करके घोंसला बनाते थे और शाम को बंदर घोंसला नष्ट कर देता। जंगल में एक बुद्धिमान खरगोश रहता था। खरगोश जंगल के सबसे ऊंची चट्टान की गुफाओं में रहता था। वह खरगोश पक्षियों का काफी अच्छा दोस्त था।

पक्षियां उदास होकर बुद्धिमान खरगोश के पास पहुंचती हैं। पक्षियां खरगोश से अपनी समस्या बताती हैं। खरगोश सारे पक्षियों को एक योजना बताता है। खरगोश कहता है कि तुम पक्षियों में से सबसे ज्यादा फुर्तीला और बुद्धिमान कौन है जो पक्षियों का प्रतिनिधित्व कर सकें। पक्षियों के झुंड में से एक पक्षी खरगोश के सामने निकल कर आता है जिसका समर्थन अन्य सभी पक्षी करते हैं।

खरगोश कहता है कि बंदर को अन्य सभी जानवरों का नकल करने में मजा आता है इसलिए तुम्हें बंदर के साथ एक खेल खेलना है। तुम्हें बंदर के पास जाकर कहना है की हम आपको जंगल के राजा के रूप में मानने के लिए तैयार हैं पर आपको दिन भर मेरा नकल हुबहू करना है यदि आप इसमें सफल हो जाते हैं तो हम सभी पक्षी आपके गुलाम हो जाएंगे।

खरगोश आगे कहता है कि उस शैतान बंदर को धीरे धीरे तुम्हें इस चट्टान के ऊपर ले जाना है और लगातार कुछ ना कुछ क्रियाकलाप करते रहना है। जब बंदर तुम्हारा नकल उतारने में पूरी तरह मग्न रहेगा तब तुम्हें पहाड़ के बिल्कुल किनारे जाकर छलांग मार देना है। पक्षी खरगोश की योजना को पूरी तरह से समझ जाते हैं।

पक्षी बंदर के पास जाता है और खरगोश के कहे अनुसार बंदर के सामने प्रस्ताव रखता है। बंदर पक्षी का बात सुनकर काफी जोर जोर से हंसने लगता है और कहता है कि मैं इस खेल के लिए तैयार हूं। बंदर सोचता है कि मैं तो इस काम में माहिर हूं भला मुझे इस खेल में कौन हरा सकता है। पक्षी अपना कार्य प्रारंभ करता है और बंदर उसका नकल उतारना शुरू कर देता है।

काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा। बंदर को पक्षी का नकल उतारने में काफी मजा आ रहा था। अब पक्षी धीरे-धीरे चट्टान की ओर बढ़ रहा था और बंदर पक्षी का नकल उतारने में मग्न था। काफी देर बाद पक्षी और बंदर जंगल के पहाड़ी के ऊपर पहुंच गए। बंदर को यह भी पता नहीं था कि वह कहां पहुंच गया है क्योंकि बंदर पक्षी का नकल उतारने में व्यस्त था।

बंदर मन ही मन खुश हो रहा था की शाम होने के बाद पक्षियों का राजा होगा। पक्षी धीरे-धीरे पहाड़ की चोटी की बिल्कुल किनारे आ गया। पक्षी सही समय का इंतजार कर रही थी। इस बीच पक्षी एक बार भी उड़ान नहीं भरी थी। वह पैदल पहाड़ की चोटी में आई थी। जब बंदर पूरी तरह से नकल उतारने में व्यस्त था तब पक्षी अचानक पहाड़ की चोटी से छलांग लगा देती है तभी बंदर भी बिना सोचे समझे पहाड़ की चोटी से छलांग लगा देता है।

पक्षी तो उड़ जाती है पर बंदर सीधे पहाड़ की चोटी से नीचे पड़े चट्टान में गिरता है इससे बंदर का पैर टूट जाता है। बंदर को अपनी मूर्खता पर अफसोस होता है। जंगल के सारे जानवर और पक्षियों बंदर की ऐसी हालत देखकर बंदर पर हंसने लगते हैं। अब बंदर चल भी नहीं पा रहा था। बंदर को अपने किए का सजा मिल चुका था।

तभी वहां पर खरगोश आता है। खरगोश बंदर को सभी से माफी मांगने के लिए कहता है। बंदर के पास अन्य दूसरा विकल्प नहीं होने के कारण सभी से माफी मांगता है। जंगल के सभी जानवर और पक्षी बंदर को माफ कर देते हैं, और बंदर का इलाज किया जाता है। कुछ महीनों में बंदर का पैर ठीक हो जाता है और वह पहले की तरह उछल कूद करने में समर्थ हो जाता है। अब सारे जानवर खुशी खुशी मिल जुल कर रहने लगे। बंदर इसके बाद कभी भी किसी अन्य जीवो को परेशान नहीं किया बल्कि उसने सभी का मदद करना प्रारंभ कर दिया।

बंदर, लोमड़ी और जादूगर

सुबह का समय था। ठंडा ऋतु होने की वजह से सुबह का मौसम काफी ठंडा था। चारों ओर सफेद कोहरा फैला हुआ था। धीरे-धीरे आसमान से धूप बाहर आने लगा था जिससे कोहरा धीरे-धीरे छट रहा था। ठंडा का समय होने की वजह से बंदर पेड़ में ना सोकर पहाड़ की गुफाओं में रात गुजार कर सुबह के समय बाहर आ रहा था और वह बहुत भूखा था।

गुफा से बाहर निकलते वक्त उसका सर एक मधुमक्खी के छत्ते से टकरा गया जिससे मधुमक्खियां काफी नाराज हो गई। मधुमक्खी के झुण्ड ने बंदर पर हमला कर दिया और उसे काट लिया। दर्द के मारे बंदर गुफा से निकलकर पागलों की भांति जंगल में भागने लगा।

बंदर जंगल के एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। दर्द के मारे बंदर अंदर ही अंदर करार रहा था। वहीं पास में से एक लोमड़ी गुजर रहा था। बंदर को परेशान देखकर लोमड़ी बंदर का हाल चाल पूछने चला गया। बंदर लोमड़ी को दुख भरी घटना बताया। लोमड़ी ने बंदर को कहा कि मैं एक ऐसा जादूगर को जानता हूं जो तुम्हारी पीड़ा को ठीक कर देगा। यह सुनकर बंदर काफी खुश हुआ और उस जादूगर का पता पूछने लगा लोमड़ी को।

लोमड़ी ने कहा की, चलो मैं तुमको उस जादूगर के पास ले जाता हूं जो कुछ ही पल में तुम्हारा दर्द को ठीक कर देगा। लोमड़ी और बंदर दोनों साथ-साथ जंगल में चलने लगे। कुछ ही देर में लोमड़ी और बंदर जादूगर के घर के पास पहुंच गए। बंदर ने अपने ऊपर घटी घटनाओं को जादूगर के सामने पुनः बताया।

यह सुनकर जादूगर कहने लगा कि मैं तुम्हारा पीड़ा को ठीक कर सकता हूं लेकिन इसके लिए मुझे एक वस्तु की आवश्यकता है जिसे तुम्हें लाकर देना होगा। जादूगर कहने लगा कि पहाड़ के किनारे एक तालाब है उस तालाब के बीचो बीच एक एक बड़ा सा पेड़ है उस पेड़ के पत्तों को तुम्हें तोड़कर लाना होगा मेरे पास। इसके बाद ही मैं तुम्हारा दर्द का उपचार कर पाऊंगा।

लोमड़ी और बंदर तालाब के पास पहुंचते हैं। बंदर तालाब में छलांग लगाकर तालाब के बीचोबीच जाता है और पेड़ के पत्तों को तोड़कर तलाब से बाहर निकाल लाता है। दोनों फिर जादूगर के घर की ओर चले जाते हैं। बंदर जादूगर को पेड़ के पत्तों को देता है और जादूगर तुरंत ही बंदर का दर्द को ठीक कर देता है।

बंदर जादूगर और लोमड़ी को धन्यवाद कहता है और वहां से जाने लगता है। तभी लोमड़ी आवाज लगाता है। लोमड़ी के आवाज लगाने पर बंदर रुक जाता है। लोमड़ी बंदर के सामने जाकर कहता है कि तुम्हारी एक समस्या तो दूर हो गयी। क्या तुम्हें अपनी दूसरी समस्या से छुटकारा नहीं पाना है? बंदर कुछ समझा नहीं, तब लोमड़ी कहता है क्या तुम्हें भूख नहीं लगी है? बंदर बोलता है, भूख तो बड़ी जोर की लगी है पर अभी खाने के लिए कुछ नहीं है।

लोमड़ी बंदर से कहता है कि तुमसे मिलने से पूर्व मैं एक केले के बगीचे से होता हुआ गुजर रहा था पर केले के पेड़ काफी बड़े होने कारण मैं केला तोड़ नहीं पाया। पर तुम तो पेड़ में चढ़ने एवं उछल कूद करने में काफी माहिर हो। बंदर कहता है क्यों नहीं। लोमड़ी बंदर को केले के बगीचे में ले जाता है। बंदर इतने सारे केले देखकर बहुत खुश हो जाता है। दोनों साथ में मिलकर ढेर सारे केले खाते हैं और कुछ केले तोड़कर जादूगर के घर भी ले जाते हैं उसका धन्यवाद करने के लिए।

जादूगर केले देखकर बहुत ही खुश हो जाता है और दोनों को एक जादू की छड़ी देता है। दोनों से जादूगर कहता है कि इस छड़ी को कभी भी जमीन में मत रखना। यदि तुम इस छड़ी को जमीन में रखोगे तो यह अपना जादुई शक्ति खो देगा। बंदर और लोमड़ी जादुई छड़ी को पकड़ कर जंगल की ओर चल दिए। जब भी बंदर और लोमड़ी को भूख लगता है तो वह अपने मन में फल का नाम सोचते हैं और वह जादुई छड़ी उन्हें वह फल लाकर देता था। काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। अब उन्हें खाने पीने की कोई भी चिंता नहीं थी।

एक दिन बंदर को जंगल में एक बहुत ही सुंदर फल दिखाई दिया पर उसका नाम ना जानने के कारण वह अपने मन में उस फल का नाम नहीं सोच पाया जिसके कारण जादुई छड़ी उसे वह फल लाकर नहीं दिया। उस वक्त बंदर के साथ लोमड़ी नहीं था। बंदर बिना कोई विचार किए अपनी नटखट प्रवृत्ति के कारण जादुई छड़ी को जमीन में रख दिया और फल खाने के लिए पेड़ में चढ़ने लगा। बंदर पेड़ में चढ़कर उस फल को तोड़ा और जी भर कर फल खाया। फल खाने के बाद बंदर को पछतावा होने लगा क्योंकि उसने जादुई छड़ी को जमीन में रख दिया था।

जादुई छड़ी को जमीन में रखने के बाद उसकी शक्ति खत्म हो गई थी। बंदर लोमड़ी के पास नहीं गया क्योंकि वह अपने किए पर शर्मिंदा था। बंदर वहां से दूर घने जंगल में चला गया और कभी नहीं लौटा। लोमड़ी बंदर को ढूंढते हुए थक गया परंतु उसे उसका मित्र बंदर नहीं मिला। लोमड़ी अचानक उस फल के वृक्ष के पास पहुंचा और उस फल के वृक्ष के पास उस जादुई छड़ी को देखा। वह जादुई छड़ी अपना जादुई शक्ति खो‌ चुका था क्योंकि उसे जमीन में रख दिया गया था।

लोमड़ी सोचने लगा कि बंदर तो अपनी प्रवृत्ति से बहुत नटखट होता है इसलिए शायद उसने लालच में आकर जादू की छड़ी को जमीन में रख दिया और फल खाने के लिए सामने का वृक्ष में चढ़ गया होगा। बंदर को अपने किए पर दुख होगा और शर्म आ रहा होगा इसलिए वह मुझसे दूर चला गया होगा।

लोमड़ी अपनी ऊंची आवाज में सारे जंगल को बतलाने लगा कि संसार में उपस्थित हर एक वस्तु एवं जीव के पास अपनी एक खास प्रकृति या गुणधर्म होता है जिसे वह चाह कर भी नहीं छोड़ सकता है। सुखी लकड़ी कभी भी पानी में नहीं डूबता और शेर कभी भी मांस खाना नहीं छोड़ सकता है उसी प्रकार बंदर नटखट प्रकृति को नहीं छोड़ पाया। हे जंगल के वासियों मेरा एक अनमोल ज्ञान हमेशा याद रखना कि तुम किसी वस्तु से कोई कार्य करो तो उसकी गुणधर्म अवश्य जान लो तथा किसी प्राणी से कोई रिश्ता बनाओ तो उसकी प्रकृति को अवश्य पहचान लो।

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