महाराज कृष्णदेव राय कभी-कभी अपने दरबार में इतने सहज हो जाते थे कि उन्हें देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वे एक कुशल प्रशासक, कुशल राजनीतिज्ञ और अनुशासनप्रिय शासक हैं। जिस दिन महाराज में सहजता दिखती, उस दिन आम सभासद भी मस्ती मं आ जाते। सभा भवन में हँसी, ठिठोली, बहस, बतरस सब कुछ होता।
तेनाली राम एकमात्र ऐसा सभासद था जो यह समझता था कि महाराज का अचानक सहज हो जाना और सभासदों को इस तरह ढील देना भी उनकी शासन-नीति का हिस्सा है। इससे महाराज अपने सभासदों की मूल प्रवृत्तियों को समझने का प्रयास करते हैं। सभासदों में खुलापन आते ही थोड़ी-बहुत उच्छृंखलता भी आ जाती थी जिसे उस दिन महाराज क्षम्य मानते थे लेकिन उच्छृंखल होने वाले सभासदों के प्रति उनका व्यवहार बाद में बदल जाता था। वे ऐसे सभासदों से कड़ाई से पेश आते और आदेशात्मक होकर छोटी पंक्तियों में बातें करते।
एक दिन तेनाली राम थोड़ी देर से सभाभवन में पहुँचा। उस समय एक सभासद कोई मनोरंजक घटना सुना रहा था। उसकी बातें समाप्त होने पर सभी सभासद हँस पड़े। महाराज भी खूब हँसे। चूँकि तेनाली राम ने पहले कही गई बातें नहीं सुनी थीं इसलिए वह नहीं हँसा। अपने आसन पर गम्भीर बना बैठा रहा। महाराज ने उसे देखा और महसूस किया कि सबके हँसने मं तेनाली राम साथ नहीं दे रहा है। महाराज को यह बात बुरी लगी मगर उन्होंने उस समय तेनाली राम से कुछ नहीं कहा।
न जाने कैसे सभासदों के बीच दान-पुण्य, धर्म-कर्म और ईमानदारी पर बहस होने लगी।
एक सभासद ने कहा, “महाराज! मेरे विचार से धनवान लोग गरीबों की तुलना में अधिक ईमानदार होते हैं। वे स्वयं साधन-सम्पन्न होते हैं। आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु उन्हें उपलब्ध होती है इसलिए छोटी-छोटी चीजों के लिए उनका ईमान नहीं डोलता। वे दान- पुण्य करते हैं इसलिए उनमें धार्मिक भावना भी विद्यमान रहती है जबकि गरीबों का ईमान जल्दी ही डोल जाता है।”
तेनाली राम, जो अब तक चुप था, इस सभासद की बातें सुनने के बाद अपने आसन से उठा और बोला, “महाराज! मैं माननीय सभासद के इस कथन से सहमत नहीं हैं। मेरा विश्वास है कि गरीब आदमी अधिक धर्मभीरु होता है। वह भगवान से डरता है, इसलिए वह गलत काम करने से बचता है। ईश्वर का भय गरीबों को इतना अधिक होता है कि उसका ईमान इसी भय के कारण डोलता नहीं। धनवान में ईश्वर का भय इस तरह का नहीं
होता। उसके दान-पुण्य में भी लौकिक प्रतिष्ठा की चाह छुपी रहती है कि लोग उसे ऐश्वर्यशाली और परोपकारी के रूप में स्वीकार करें।”
तेनाली राम की गम्भीर वाणी थोड़ी देर तक सभाभवन में अनुगँज उत्पन्न करती रही। तेनाली राम के चुप होते ही महाराज ने कहा, “तेनाली राम! तुम एक मूल बात भूल रहे हो, ईमानदारी एक मानवीय गुण है जो किसी में भी हो सकता है। इसमें धनवान और निर्धन की कोई बात ही नहीं है।”
तेनाली राम ने कहा, “आप ठीक कह रहे हैं महाराज! बस, मैं यह कह रहा था कि गरीबों के संघर्ष की उष्मा ईमानदारी की ऊष्मा के समरूप होती है। इसी ऊष्मा के कारण गरीबों में उचित-अनुचित का ध्यान रखने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है।”
“तो, तुम फिर वही कह रहे हो कि गरीबों में ईमानदारी होती है और धनवान, वैभव- सम्पन्न लोगों में अपेक्षाकृत इसका अभाव रहता है?” महाराज ने पूछा।
“जी हाँ श्रीमान-यही कहना चाहता हूँ मैं।” तेनाली राम ने निर्भीक होकर कहा।
महाराज स्वयं वैभव-सम्पन्न थे इसलिए तेनाली राम की बातें उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर ले लीं और तेनाली राम से कहा, “तुम्हें प्रमाणित करना पड़ेगा तेनाली राम!”
“मुझे स्वीकार है महाराज!” तेनाली राम ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया।
सभा में जो सहजता थी, इस गम्भीर चर्चा के कारण समाप्त हो गई। महाराज ने उसी समय सभा विसर्जित कर दी और तेनाली राम को रोककर शेष सभासदों को जाने दिया।
लौट रहे सभासदों में इसी बात की चर्चा हो रही थी कि आज महाराज तेनाली राम से नाराज हो गए…कि महाराज से तेनाली राम को मुँह नहीं लगाना चाहिए… कि अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे! अर्थात् जितने मैंह, उतनी बातें!
सभासदों के जाने के बाद महाराज ने तेनाली राम से पूछा, “तेनाली राम, तुम कितने दिनों में सिद्ध कर सकोगे कि धनवानों की अपेक्षा गरीब आदमी अधिक ईमानदार होता है?”
“महाराज! मुझे सौ-सौ स्वर्णमुद्राओं की दो थैलियाँ और दो सुरक्षा प्रहरी प्रदान करें। मैं यह बात दो दिनों अर्थात आज और कल में प्रमाणित कर देंगा कि धनवान लोगों में धन- लोलुपता होती है जो उन्हें ईमानदार नहीं रहने देती जबकि गरीबों में धन-लोलुपता नहीं होती!” तेनाली राम ने कहा।
महाराज तेनाली राम के इस उत्तर से भीतर ही भीतर तिलमिला गए। मगर उन्होंने कुछ कहा नहीं। उन्होंने तेनाली राम को दो थैलियों में स्वर्णमुद्राएँ और दो प्रहरी उपलब्ध करा दिए।
तेनाली राम उन्हें लेकर राजभवन से बाहर राजमार्ग की ओर, महाराज की आज्ञा लेकर, चल पड़ा। महाराज से चलते समय उसने कहा, “महाराज, आप मुझे शुभकामना दें कि कल शाम तक मैं प्रमाण सहित अपनी बातें सिद्ध कर सकें।”
तेनाली राम ने दोनों प्रहरियों को व्यापारी वेश में अपने घर आने का निर्देश दिया और स्वयं अपने घर चला गया। वह अपने साथ स्वर्णमुद्राओं की थैलियाँ भी लेता गया। ऐसे अवसर पर तेनाली राम बहुत सजग हो जाया करता था। उसके रन्ध्र-रन्ध्र में सजगता उत्पन्न हो जाती थी यानी वह सहत्रनेत्रधारी बन जाता था। लोग उसके इसी गुण के कारण ही उसे ‘चक्षुचवा’ और ‘प्रज्ञाचक्षु’ आदि विशेषणों से सम्बोधित किया करते थे।
उसके घर पहुँचने के थोड़ी देर बाद ही दोनों प्रहरी व्यापारियों के बाने में उसके घर पहुँचे। तेनाली राम उन्हें लेकर विजयनगर के बाजार में चला आया और देर तक इधर- उधर टहलता रहा। वापसी के समय उसने दोनों प्रहरियों को एक-एक स्वर्णमुद्राओं की थैली थमा दी और एक को एक धनी व्यापारी के आगे चलते हुए थैली कहीं सुनसान इलाके में गिराकर चले जाने को कहा।
उसने प्रहरी को उस धनी आदमी को भी दिखा दिया जिस धनी आदमी के आगे उसे चलना था। सम्भवतः तेनाली राम उस धनी आदमी को पहचानता था और जानता भी था कि वह कहाँ रहता है। पुनः दूसरे प्रहरी को एक गरीब आदमी के आगे-आगे जाने का उसने निर्देश दिया और प्रहरी को बता दिया कि उस गरीब आदमी का गन्तव्य क्या है। इस प्रहरी को भी तेनाली राम ने सुनसान स्थान पर थैली इस तरह गिराने को कहा जिसे वह गरीब आदमी देख ले…।
अपनी व्यूह-रचना तैयार कर लेने के बाद उसने दोनों प्रहरियों को यह निर्देश भी दिया कि वे दोनों थैलियों गिरा देने के बाद तेजी से आगे जाएँ और कहीं छुप जाएँ। जब उनका ‘शिकार’ राह में गिरी थैली लेकर बड़े तब वे उनका पीछा करें और देखें कि वे थैली का क्या करते हैं।
अपने द्वारा दिए गए निर्देशों से तेनाली राम सन्तुष्ट था। उसे विश्वास था कि आज रात में ही उसे वांछित प्रमाण प्राप्त हो जाएगा। दोनों प्रहरियों को विदा करने के बाद तेनाली राम अपने घर लौट आया।
दूसरे दिन, सुबह ही दोनों प्रहरी तेनाली राम के घर पर पहुँच गए। वह उस समय दरबार जाने के लिए तैयार हो रहा था। उसने प्रहरियों से पूछा, “क्या समाचार लाए हो?”
एक प्रहरी ने तेनाली राम से कहा, “श्रीमान, मैं आपके निर्देश पर जिस व्यक्ति के पीछे गया था उसका नाम गिरिधारी लाल है। उसकी बाजार में सोने-चाँदी के जेवरों की दुकान है। बहुत पैसेवाला आदमी है वह।”
अभी उसकी बात पूरी नहीं हुई थी कि तेनाली राम ने उसे टोक दिया, “अरे भाई! मैंने तुम्हें किसी के पीछे नहीं भेजा था-आगे भेजा था। ठीक से सारी बातें बताओ।”
“क्षमा करना श्रीमान! भूल हो गई!” प्रहरी ने कहा और कल शाम को घटित घटना बताने लगा, “श्रीमान! जब मैं उस आदमी, मेरा मतलब है कि गिरिधारी लाल के आगे- आगे चलते हुए कदम्ब पेड़ के पास पहुँचा तो मुझे राह पूरी तरह खाली दिखी।
सुनसान रास्ते पर दो ही मुसाफिर थे-मैं और वह। मैं उससे मात्र चार कदम की दूरी पर था। मौका देखकर मैंने कमर में खॉसी हुई स्वर्णमुद्राओं की थैली गिरा दी और सामान्य चाल से आगे बढ़ता रहा, मानो मुझे थैली गिरने का भान ही नहीं है। कुल चार कदम चलकर मैंने अपनी गरदन पीछे की ओर हल्के से घुमाई तो पाया, वह व्यक्ति नीचे गिरी थैली उठा रहा था।
मैंने अपनी गति बढ़ा दी। थैली उठाने के बाद वह थोड़ी धीमी गति से चलने लगा। मैं तेज चलता हुआ राह में आए एक पेड़ की ओट लेकर खड़ा होकर उसकी प्रतीक्षा करने लगा। जब वह उस पेड़ से थोड़ा आगे निकल गया तब में भी पेड़ की ओट से बाहर निकलकर उसका पीछा करने लगा। वह आदमी हल्दी बाजार के निकट बसे कुलीनों के मुहल्ले में बने गुलाबी मकान में रहता है।
उसके घर की बाहरी दीवार पर उसका नाम खुदा हुआ है- गिरिधारी लाल। मैंने घर के चारों ओर छोड़ी गई खुली जमीन का लाभ लिया और एक कमरे की खुली खिड़की से अन्दर झाँका तो पाया कि गिरिधारी लाल थैली से स्वर्णमुद्राएँ निकालकर गिन रहा है। उसने मुद्राएँ गिनकर उन्हें थैली में रखा और आसमान की ओर हाथ जोड़े कुछ देर तक खड़ा रहा फिर स्वर्णमुद्राओं की थैली को कमरे में लगी तिजोरी में रखा।
तभी एक वृद्ध व्यक्ति उस कमरे में आया और पूछा, ‘क्या बात है गिरिधारी? तुमने हाथ-पाँव भी नहीं धोए और कमरे में चले आए? तुम्हारा स्वास्थ्य तो ठीक है?’ प्रतिउत्तर में उसने क्या कहा, मैं नहीं सुन पाया।”
तेनाली राम ने उस प्रहरी की पीठ थपथपाई और दूसरे प्रहरी की ओर देखकर पूछा, “तुम्हारा समाचार!”
उस प्रहरी ने कहा, “श्रीमान, मैं जिस व्यक्ति के पीछे गया था वह बहुत गरीब और ईमानदार आदमी है। हल्दी बाजार के पश्चिम में बसे मछुआरों की बस्ती में रहता है। जब मैं उसके आगे चलते हुए एक स्थान पर थैली गिराकर आगे बढ़ा तब उसने आवाज लगाई-‘अरे भाई साहब! आपकी थैली!’ मैंने उसकी आवाज अनसुनी कर दी और तेजी से आगे बढ़ने लगा और वह हाथ में थैली लिये लगभग दौड़ता हुआ, ‘भाई साहब, भाई साहब’ पुकारता रहा।
अभी वह दो-चार कदम ही दौड़ पाया था कि उसके पाँव में किसी चीज से ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। उसके हाथ से थैली छिटक गई और उसमें से स्वर्णमुद्राएँ निकलकर सड़क पर बिखर गई। तब तक में सड़क के पास के एक गड्ढे में जाकर छुप गया।
थोड़ी देर बाद वह आदमी हाथ में थैली लिये, इधर-उधर देखता हुआ तेज कदमों से जाता दिखा। सम्भवतः वह मुझे ही तलाश रहा था। मैं थोड़ी देर के बाद उस गली से निकला और उससे कुछ दूरी बनाकर चलने लगा। जब वह व्यक्ति अपने घर पहुँच गया तब चटाई पर बैठकर उसने स्वर्णमुद्राएँ गिनीं। उसने एक कपड़े के टुकड़े में थैली बाँधकर अपने हाथ में ले ली और उसने कहीं जाने के लिए निकल गया।
मैंने समझा कि जरूर वह स्वर्णमुद्राओं को छुपाने के लिए जा रहा होगा लेकिन वह अपने घर से सीधे राज्य कोषागार पहुँचा और सौ स्वर्णमुद्राओं की वह थैली वहाँ जमा कराकर पर्चा कटवाया। उसके बाद वह अपने घर चला आया। राज्य कोषागार में उसने पर्चे पर अपना नाम रामानुजम् लिखवाया है।
तेनाली राम ने उस प्रहरी की भी पीठ थपथपाई और उन्हें सीधे राजभवन पहुँचने का निर्देश देकर भोजन के लिए अपने घर के भीतर चला गया।
“महाराज! आपको अब अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी! आप कृपा कर राज्य कोषागार से यह पता कराएँ कि राजमार्ग में पड़ी सौ-सौ स्वर्णमुद्राओं की दो थैलियाँ क्या किसी को मिली हैं? और राज्य कोषागार में यदि इस तरह की थैलियाँ जमा कराई गई हैं तो जमा करानेवाला कौन था?”
“अरे!” महाराज बैंक पड़े। “क्या बात हो गई तेनाली राम! तुम शेष सभासदों के आने की प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते?” उन्होंने तेनाली राम से कहा।
“महाराज!” तेनाली राम ने विनम्रता से कहा, “जिन दो प्रहरियों की सेवाएँ मैंने ली थीं,
वे दोनों रात भर जगे रहे हैं। मैं उनकी सेवाएँ वापस करने के उद्देश्य से ही सभा शुरू होने के समय से पहले पहुँच गया हैं। कल जो पहेली सुलझाने का जिम्मा आपने मुझे सौंपा था उसके लिए ‘प्रमाण’ प्राप्त कर लेने के उद्देश्य से में सक्रिय हुआ है। कृपया वांछित सूचनाएँ मँगाने में मेरा सहयोग करें। यदि आप निर्देश देंगे तो सूचना अतिशीघ्र प्राप्त हो जाएगी।
और सभासदों के आने पर इन दोनों प्रहरियों को मुक्ति मिल सकेगी ये दोनों प्रहरी मेरे शोध के प्रमाण भी हैं और प्रत्यक्षदर्शी भी।”
महाराज कृष्णदेव राय समझ चुके थे कि तेनाली राम ने गरीबी और ईमानदारी का सम्बन्ध स्थापित करने का कोई सूत्र अवश्य पा लिया है।
उन्होंने राज्य कोषागार से सूचना मेंगाई। सूचना पत्र में लिखा गया था कि रामानुजम् नाम के एक व्यक्ति ने सौ स्वर्णमुद्राओं की एक थैली राज्य कोषागार में कल मध्य रात्रि से पूर्व जमा कराई है। यह थैली उसे राजमार्ग से हल्दी बाजार जानेवाली राह पर मिली थी। रामानुजम् हल्दी बाजार के पास मधेरों की बस्ती में रहता है और मधुमक्खियों के छत्ते से मधु निकालने का कार्य करता है।
महाराज ने सूचना-पत्र का अवलोकन कर उसे तेनाली राम को सौंप दिया। जब सभा भवन में सभी सभासद पहुँच गए तब तेनाली राम ने कहना आरम्भ किया, “महाराज! आपके निर्देश पर कल मैंने एक प्रयोग किया और प्रयोग का परिणाम मुझे आज मिल गया।
यह सूचना-पत्र, जो राज्य कोषागार से मँगाया गया है, वह एक गरीब व्यक्ति के ईमानदार होने का प्रमाण-पत्र है। यह सूचना-पत्र बताता है कि गरीब आदमी धन-लोलुप नहीं होता है।” फिर तेनाली राम ने सविस्तार अपनी योजना के क्रियान्वयन की कथा सभा भवन में सुनाई। प्रमाण के रूप में दोनों प्रहरियों को प्रस्तुत किया।
दोनों प्रहरियों ने सभासदों को सम्पूर्ण घटना की जानकारी दी। महाराज ने सिपाहियों को भेजकर सेठ गिरिधारी लाल को पकड़वाकर मँगवाया। पहले तो सेठ इस घटना को ही गलत बताता रहा लेकिन जब तेनाली राम ने उससे कहा कि सौ स्वर्णमुद्राओं से भरी थैली तुमने अपने कमरे की दीवार में लगी तिजोरी में रखी है तब वह सेठ टूट गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
महाराज ने सिपाहियों को भेजकर स्वर्णमुद्राएँ मँगा लीं और उसे राज्य कोषागार को सौंप दिया गया। सेठ गिरिधारी लाल को महाराज ने जेल भिजवा दिया। गरीब रामानुजम् को दरबार में बुलाकर सौ स्वर्णमुद्राएँ उसकी ईमानदारी के पुरस्कारस्वरूप प्रदान कीं। इसके बाद महाराज ने तेनाली को अपने गले से लगा लिया और कहा, “सचमुच तेनाली राम! तुम्हारी मेधा का कोई दूसरा उदाहरण मैंने कहीं नहीं देखा।”